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3/30/24

कुछ नहीं हूं (कविता):- कमल दिक्षित

कुछ नहीं हूं (कविता):- कमल दिक्षित 
जिंदगी पर आधारित राजस्थान के कमल दिक्षित द्वारा रचित बेहतरीन कविता को जरूर पढ़ें और अपने लोगों तक साझा करें।।

     कुछ नहीं हूं:- कमल दिक्षित    

 संंजोय विचारों से बहुत कुछ हूं

     फिर भी कुछ नहीं हूं,

लिखने के सपने देखू पर केसे, 

कम्बक्त नकारात्मकता ने सोने ही नहीं दिया।

मन का सुरज ,,, विचारों की तपन 

इतनी की शब्दों से लोहा पिघाल दू।

सोच नेक रही सदेव मन में 

कोई कहे बेबसी अपनी तो 

नि, शवार्थ भाव से से निकाल दूं ।


गांव की डगर पर चलकर बसर ज़िन्दगी 

पर संस्कारों से तो लबरेज हो गये।

पथ पकड़ी शहर की तो मालुम हुआ

कि सपने तो सब खो गये। 

पथ भ्रष्टाचारीयों ने हमारी ही दशा से 

अपनी अपनी स्वार्थ की दिशा बदल ली। 

और मेरे विचारों को दीन हीन‌‌ दशा में डाल दिया।

उभरते भी कैसे पर फिर भी

उस दशा में भी जिने का हुनर निकाल लिया।

 

घर औरों के जलाकर 

ख़ुद के चूल्हे में अग्नि प्रज्वलित 

करने वालों की तो चांदी सी चल रही है।

आज के दोर में लजा संस्कारी और 

संज्ञान से चलने वालों के घरों में 

बेरोज़गारी की आंधी चल‌ रही है।

सिर्फ आत्म विश्वास की ऊर्जा से

रोशनी दिख रहीं है। याद करता हूं 

उस दौर को लगता है इन्सानियत तो 

बेबसी में बिक रही है।

     रचनाकार:- कमल दिक्षित 

गेलासर तह,,मकराना डीडवाना।

              (राजस्थान )

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धन्यवाद

    हरे कृष्ण प्रकाश 

  (युवा कवि, पूर्णियां बिहार)

   (साहित्य आजकल व साहित्य संसार)




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