1/13/25

ब्लैकमेलिंग का जाल (हिंदी कविता ):- इजहार अली हैदर


 ब्लैकमेलिंग का जाल :- इजहार अली हैदर


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ब्लैकमेलिंग का जाल :- इजहार अली हैदर

गाँव की पगडंडियों पर चलती,

सपनों में खोई एक लड़की थी।

मासूम सी उसकी हंसी,

दिल में कई अरमान भरी थी।


खेल कूद और हंसी-ठिठोली,

गाँव की रीत निभाती थी।

न जाने कब किसने देखा,

उसकी तस्वीरें चुराईं थी।


एक दिन वो अजनबी मिला,

मुस्कान में उसने जाल बिछाया।

मासूमियत को उसकी भांप कर,

अपना उसने खेल रचाया।


पहले प्यार का झूठा वादा,

फिर बातें मीठी-मीठी।

धीरे-धीरे उसके दिल को,

फांस लिया एक नीच नीयती।


फिर एक दिन उसने धमकाया,

वो तस्वीरें और वो बातें।

उसकी इज्जत और मान को,

अब उसने हथियार बनाया।


"दे दो ये, करो वो काम,

वरना नाम मिटा दूंगा।

तुम्हारी इन मासूम आँखों का,

मैं सारा नशा उतार दूंगा।"


डर और शर्म से सहमी लड़की,

उसने किसी को नहीं बताया।

हर रोज़ उसके कदमों में,

उस दरिंदे का साया।


माँ-बाप की इज्जत का डर,

और समाज का कटु व्यंग।

उसकी आत्मा चीख उठी,

पर मुँह से निकली न एक संग।


हर रोज़ एक नई सजा,

हर रोज़ एक नया ज़ुल्म।

वो मासूम सी चिड़िया,

अब हो गई एक कसमकश का फल।


फिर एक दिन हिम्मत बांधी,

अपनी चुप्पी को तोड़ा।

गाँव की पंचायत में जाकर,

अपनी दर्द भरी दास्तान बोला।


सुनकर उसकी करुण कहानी,

सबकी आँखें भर आईं।

उस दरिंदे को पकड़ने के लिए,

गाँव ने अब कमर कसी।


लड़कियों की इज्जत और मान,

अब गाँव की शान बनी।

उसकी हिम्मत और साहस से,

नई दिशा गाँव ने पाई।


अब हर लड़की को सिखाया जाता,

साहस और आत्मसम्मान का पाठ।

ब्लैकमेलिंग के इस काले जाल को,

मिलकर सबने किया साफ।


उस मासूम की कहानी ने,

गाँव को नई राह दिखाई।

साहस और संगठित प्रयास से,

हर मुश्किल को मात दिलाई।


अब गाँव में हर लड़की,

अपने सपनों को जीती है।

साहस और आत्मबल के संग,

जीवन की राह चुनती है।


कवि - इजहार अली हैदर

 जिला पलामू

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