बड़े हर्ष के साथ सूचित कर रहा हूँ कि लोकप्रिय साहित्यिक मंच साहित्य आजकल के द्वारा *"आपकी रचना-आपकी पहचान"* कार्यक्रम आयोजित की गई है। इस कार्यक्रम के निमित्त आ0 अन्नपूर्णा तिवारी अनु जी की रचना प्रेषित है। आप सभी अवश्य पढ़ें व टिपण्णी दें।
सम्मानीय मंच नमन 🙏
आपकी रचना -आपकी पहचान
विषय - काश वो बचपन फिर से आता
ना थकते ना हारते, खेल खेल मे सब हो जाता,
काश वो बचपन फिर से आता।
झगडे होते इक पल मे, दूजे पल सुलह हो जाता,
खूब शरारत करते दिन भर,
ना तन थकता ना मन भरता
दौड़ा भागी करते करते शाम हो गई पता ना चलता।
काश वो बचपन फिर से आता।
पापा फिर पढ़ाते सबको, माँ का प्यार पुनः मिल जाता,
दौर चले ज़ब गीतों का, अंताक्षरी का शब्द मिल जाता,
परियो, राजकुमारो के किस्सों का हिस्सा मिल जाता,
छत पर फिर सोने को तकिया और नरम बिस्तर मिल जाता।
काश वो बचपन फिर से आता
गुड्डे गुड़िया साथी होते, नदी पहाड़ फिर रंग जमाता,
गिल्ली मिलती, डंडा मिलता, कंचे मिलते नेम मिलाने,
पतंग डोर का मौसम बन जाता।
काश वो बचपन फिर से आता
आम, जामुन के पत्तों से फिर बाड़ी मे मंडप बन जाता,
मिट्टी का चूल्हा बन जाता, पत्ते की पूरी बन जाती,
अखती की पूजा मे शामिल, फिर पूरा मोहल्ला हो जाता,
गुड्डे, गुड़िया की शादी मे पिंकू फिर से ढ़ोल बजाता।
काश वो बचपन फिर से आता
झम झमा झम सावन आता, मीठी मीठी बारिश लाता,
मिट्टी की भीनी खुशबू से, रोम रोम पुलकित हो जाता,
कागज की नावो पर चढ़कर, भौरा नदियाँ पार हो जाता,
अंदर बाहर पानी मे खेले सच कितना आनंद आ जाता।
काश वो बचपन फिर से आता।
दीदी के संग लाड लड़ाते, भैया के संग खेलने जाते,
दस पैसे की गोली का मुँह मे फिर से स्वाद आ जाता,
अमराई के आम तोड़ते कही,कोई फिर पकड़ा जाता,
खूब शरारत करते दिन भर।
काश वो बचपन फिर से आता,
दशहरे के मेलो मे मन इधर उधर दौड़ लगाता,
लकड़ी के झूलो की रौनक से मैदान नया सजाया जाता,
टैक्स फ्री कोई पिक्चर लगती, पूरा स्कूल देखने जाता,
मन के भावो को आनंदित करने, काश कोई पल फिर से आता।
काश वो बचपन फिर से आता।
अनगिनत पुष्प खिला यादो के, सबमे फिर खुशबू फैलाता,
बचपन के मदमस्त सपनो को नई उड़ान दे जाता,
मिटा द्वेष सबके मन मे, बचपन का प्यारा प्यार लुटाता।
काश वो बचपन फिर से आता।
अन्नपूर्णा तिवारी अनु मंडला मध्यप्रदेश
रचना स्वरचित, मौलिक है।
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