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शीर्षक:- छोटा-सा आशिक
वो मेरा छोटा-सा आशिक
जब मुझे दिख जाता था
उसी चौराहे पर वह
मेरे इंतजार में
बन-सवंर कर आता था
याद है मुझे आज भी वो दिन
जब मैराथन की दौड़ में
वो खुद हीरो बनकर
मुझे अपना शौर्य दिखाने आया था
उसके चेहरे पर
तब भी एक चमक थी
जब वो मुझसे हारा था
हद तो तब हो गई
जब दौड़ते हुए
मेरा पांच साल का बेटा
मॉम कहते हुए
मुझे गले से लगाया था
उसने दूर से ही मुझे
एकटक निहारा था
मैंने पास जाकर
उसकी पीठ को थपथपाया था
वो अपनी हाथ
मेरी तरफ बढ़ाया था
नज़रें छुपाते हुए
धीमे-से मुस्कुराया था
और इस तरह जिंदगी ने;
मुझे एक बार फिर से हंसाया था।।
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✍️ अर्चना किशोर
(पटना, बिहार)
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धन्यवाद
हरे कृष्ण प्रकाश ( युवा कवि)
(संस्थापक- साहित्य आजकल, साहित्य संसार)