करें हम बात उनकी...
नज़्म- उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
मयस्सर हो नहीं जिनको कभी दो जून की रोटी
करें हम बात उनकी मुफ़लिसी जो लोग सहते हैं।
न मिलता दूध है जिनको तड़पते भूख से बच्चे
न रखते हम तअल्लुक आज उनसे जो पराए हैं
बने मजदूर जो बच्चे रही तालीम से दूरी
पढ़ाई हो गई महँगी इसी से सकपकाए हैं
हुए मजबूर जिनका काम धंधा हो गया चौपट
सितम दीदा शाह राहें वहीं वो लोग रहते हैं।
मिटी है हसरते- हस्ती गुसल हो आज अश्कों से
सियासत में तगाफुल झेलते कितनों के साए हैं
न हो रंगे तग़य्युर जिंदगी में अब कभी जिनके
न जाने क्यों किसी ने हाय उनके दिल जलाए हैं
हवा का रुख बदलकर नफरतों से जुड़ गया जब से
करे इंसानियत क्या आज उसके ख्वाब ढहते हैं।
समझते सब हकीमी नीम खतरे जान होती है
वकालत के लिए भी हम यही पैगाम लाए हैं
सगाने दहर जबसे बेबसों पर हो गए हाबी
तमाशा देखने वाले हमेशा मुस्कराए हैं
खिजाँ ने कर दिया मायूस अब उजड़ा चमन जिनका
करेगी क्या अक़ाइद भी यही सब लोग कहते हैं।
मशक्कत कर रहे लेकिन किया हालात ने महजूँ
यहाँ तब-ओ-तबे गम तो मुकद्दर ने बनाए हैं
अमीरों ने किया बरबाद जिनको वो करेंगे क्या
रहम के नाम पर अब तक गए वो तो सताए हैं
सितम- खुर्दा बशर पे हो फ़रेबे -मशीयत जिस दिन
न पुरसिश लें यहाँ अपने हवा के साथ बहते हैं।
नज़्म-निगार✍️ -उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
'कुमुद- निवास'
बरेली(उ.प्र.)
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
महत्वपूर्ण शब्दों का अर्थ
सितम दीदा शाह राहें-अत्याचार पीड़ित रास्ते
हसरते हस्ती- जिंदगी की अभिलाषाएँ
गुसल-स्नान
तगाफुल-उपेक्षा
रंगे तग़य्युर-परिवर्तन
सगाने दहर- दुनिया के कुत्ते
अक़ाइद-आस्था
महजूँ-निराश
तब-ओ-तबे गम- शोक की जलन का घर
सितम खुर्दा बशर- अत्याचार पीड़ित मन
फ़रेबे मशीयत-नियति का धोखा
पुरसिश-हाल चाल
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