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11/24/21

शीत पवन नित बह रही:- ललिता कश्यप

शीत पवन नित बह रही:- ललिता कश्यप

उल्लाला छंद

मात्रा भार 13-13

अंत गुरु।



शरद ऋतु चहूं छा रही, दुबक रहे लोग घर में।

हिम भरी वायु बह रही, ठिठुरन बढ़ रही जग में।


नभ नगर दूधिया हुआ, धवल सुनहरे जलधर से।

रिमझिम की झंकार से, बरसे स्वर्णिम मनहर से।


उमड़- घुमड़ बादल घिरे, गरजते जोर- शोर से।

कहीं लपकती चपल दामिनी, देख धरा को गौर से।

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शीत पवन नित बह रही , चुभती शूल समान है।

भानु देव भी छुप रहे, मेघ घूमे जहान में।


धवल हुई गिरी चोटियां, फूटती झरने धारा।

रंग सुनहरा हो रहा, जब करता घन किनारा।


शीत हुआ वन बाग भी, उपवन भी चुपचाप है।

नदियां धीमी पड़ गई, जग का घटता ताप है।


✍️ ललिता कश्यप

 गांव सायर

 जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश।


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