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शीर्षक:- बेटी
मेरी बेटी लाडो गुड़िया
मेरे घर की शान है तूँ
सचमुच तूँ जादू की पुड़िया
मेरे घर का मान है तूँ।
जी करता है तुझे निहारूँ
अपने साथ घुमाऊँ मैं
मस्ती में तूँ भी इतराए
ममता तुम्हें लुटाऊँ मैं।
तुझको कैसे मैं समझाऊँ
हम-सब की तूँ मुनिया है
एक सहारा तुम हम सबका
तूँ ही पूरी दुनिया है।
आ जा तेरे बाल सवारूँ
तेरे मैं अरमान सजाऊँ
तेरे ही सपनों की खातिर
मैं तुझको दिन-रात निखारूँ।
देख जमाना बदल गया है
कितने बदल गए हैं लोग
मौसम ने भी रंग बदला है
चुप से रहते हैं सब लोग।
कविता नन्दिनी
आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश
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