"अपना भेल बिरान" (कहानी):- गोपाल महतो
शीर्षक:- "अपना भेल बिरान"
माँ को अपने चारों पुत्र पर गर्व है ।
चारों बेटे राम, लक्ष्मण, भरत शत्रुघ्न के समान हैं ।चोरों पुत्र के लिये माँ ,अरछ परछ के बारी बारी से बहू ला दी । पिता जी के गुजरने के बाद ,सुविधा अनुसार चारों भाई अलग हो गये । मां को गुजारे के लिये 10 कट्ठा जमीन और एक मोकला बांस के बिट्टा ।
धि जमाय, हौयत मौयत के घड़ी, किसी बेटा का मुहँ न जोहना पड़े ।
फिलहाल मझला बेटा के साथ रहती है ।
मैझली बहू से मां को पटती है ।
जल्दी मुहँ पर झिक नही देती है मैझली पुतोहू ।
इधर तीनों बहुओं को , इस बात की उल्हना है , मैझली को बुढ़िया बेसी मानती है ।
उसी का घर भर रही है ।
कभी कभार मैझली पुतोहू भी बुढ़िया को रपेट देती है ।
मां आयं से भूखे रहती है । किसी से कुछ नही बोलती ।
इस बात की सूचना पत्नी द्वारा बेटा को मिलती है ।
सुनते हो जी!!
क्या बात है?
मायजी दो रोज से नही खायी है ।(इस निपूणता के साथ कहती है ,मानो यह कह रही हो कि आप बेटा होते हुए भी अपनी मां को ख्याल नही रखते हैं और मैं पुतोहू होकर भी आपकी मां को कितना ख्याल रखती हूँ ।)
सबसे ज्यादा माहिर छोटकी पुतोहू निकली ।
मां वैष्णव है ।
विसायं तिसायन से भागती है ।
छोटकी माछ काछ से हर बर्तन बासन बिसायन रखती है
तात्पर्य यह कि माँ ,डगरा के बैंगन बनी है ।कभी घड़क के इधर कभी उधर होती रहती है ।
दो चार दिन से मां अपने से लहसून, करूवा तेल ,धतूरा के पत्ता गार के ,गरमा कर ,ठेहुना पर मालिश करती है ।
काफी दर्द है ठेहुना मे।
लंगड़ा लंगड़ा के चलती है ।
राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न की नीद टूटती है ।
इस गंभीर मामला पर विचार करने के लिए ,एक साथ चारो भाई बैठते हैं ।
मां के इलाज के लिए सभी भाय , चंदा बराबर बराबर जमा करो ।
पूर्णिया लेके चलना पड़ेगा । बड़का बोले
चंदा तो दूँगा पूर्णिया जायेगा कौन ? मैझला बोले ।
सैझला चला जायेगा ।
सैझला पर छोटका को विश्वास नही है ।बढ़ा चढ़ा के हिसाब दिखाता है , सैझला भैया ।
कोन्टा लगकर बड़की सुन रही थी
बात बर्दाश्त नही हो रही थी ।
हहा कर चारों के सामने आई ।
चन्दा उन्दा कुछ नही मिलेगी ।
सालो भर पटुआ , मूंग कमा के, नोच खसोट के ,मैझला के घर भरती है ।। चंदा हम दे ।बड़ होशियार ।
जब बीमार पड़ती है तो भर गाँव हुचूक हूचुक कर दिखाती फिरती है ।
आवाज सुनकर तीनों गोतनी और मां भी आ जाती है ।
चारों गोतनी , हिसाब किताब में तगड़ी है ।
उकटा पुरान करना शुरू कर दी ।
सभी को कंठस्थ है ।इन्द्रवास का पैसा, वृद्धा पेंशन का पैसा बुढिया को जो मिला था , कौन पार्टी कितना मारा है । और छोटकी बेटी को चुपके से कितना पैसा भेजी है बुढ़िया ।
शुरू हो गयी हिस्सा-बखरा की कहानी ।
कौन कहां पर खेत ज्यादा जोत रहा है !
कौन सब चोरा के गाछ बेच लिया है ।दस साल पहले ।
कब कब बुढ़िया को ,किसने एक कोबर खिलाई है ,सब इसे कंठस्थ है ।
मां ठेहुना दर्द से परेशान है ,ये चारों बोलते बोलते परेशान हैं ।
चौतरफा वाकयुद्ध ।
चारों बेटा मूक दर्शक के तरह टुकुर टुकुर ताक रहें हैं ।
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याद है, जाड़ा ऋतु में ।
पूस का महीना फूस ।
दिन छोटा रात बड़ी । हम दोंनो छोटका भाई , तातल तातल माड़ भात खाकर (30 -40 साल पूर्व आटा के अभाव के कारण दोनों टाइम भात ही पकता था ।)
नीचे पुआल ,ऊपर चटाई लगा विछावन पर भोटिया ओढ़कर सो जाते थे ।
मां रात में चुपके से, चटाई जो डभार की बनी होती थी ,ओढ़ा देती थी ।
फोंफ काट कर सोते थे ।
भोरे भोर भूख लग जाती थी ।
आँख कीची से भरी रहती थी ।आँख मिस -मास के घूरा के पास जाते थे दोनों छोटका भाई ।आँख मिसने से थोड़ा बहुत कीची झड़ जाती,तो एक पीपनी ऊपर खिसकने के कारण उसी से हल्का एक बगहा दिखाई देती थी ।माँ उधर से भात मछली ,एक लोटा ,एक बाटी में पानी लाकर घूरा पर रख देती थीं । पानी गरम करके हम दोनों को बारी बारी से आँख धोना शुरू कर देती थी ।आँख धुलवाने में आना कानी करते तो मां एक फक्करा पढ़ती थी- "कीची -काची कौआ खाय, दूधा भाती बौआ खाय।"
आँख साफ हुई तो सामने भात और थथरा जमा मछली के झोर से भाप निकलती दिखाई दी ।
मछली भात, मां सोनकर खिलाना शुरू कर देती थीं ।
रात में हमर बेटा भुखले सो गया था, देह में क्या लगेगा ? तब ना मोटता है? कहती हुई , जबरदस्ती मुँह में कौर बना के ठुस्ती जाती है, बारी बारी से ,लक्ष्मण शत्रुघ्न को । राम भरत तब तक उड़ाक (बड़ा और समझदार) हो गये थे ।
ये सब बातें भूल गया हूँ । अपने आप से सवाल करता हूँ ।शायद ऐसा तो नही, मां जो मेरी शादी में अंतिम विध की थीं ? जब बरात निकले पर थीं तो मां एकांत में ले जाकर
अपना आँचल हटाईऔर बोली ।आज अंतिम बार मेरा दूध पी ले ।
मैं छिटककर हट गया । ये क्या कर रही हो मां ?इतना बड़ा हो गया हूँ अब आपका दूध पीऊं? ई विध है बेटा!
अबतक जे नाता ई दूध से रहो, आज दूध पीने के बाद नय रहतो । माय से सब माया मोह खत्म । ।बोलते बोलते मां की आंखे डबडबा गयीं ।मानो, मां की आंखे कह रही थीं,आज तक जो अधिकार मां को बेटा पर थी वो अधिकार खोने जा रही है ।और मां अंतिम अधिकार जमाती हुई मेरा माथा झुकाकर अपना दूध छुआ दी ।
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