जीवन की सच्चाई:- शिखा गोस्वामी
एक बारह वर्ष का बालक दो दिनो से भूखा था।अनाथ, बेसहारा बच्चा सबसे कुछ खाने को माँगता था लेकिन कोई भी उसे कुछ खाने को ना देता था।सभी उसे जाहिल, गवाँर कहकर भगा देते थे।इंसान की ये फितरत है कि वह अपने पालतू कुत्ते को तो ब्रांडेड बिस्कुट खिला देंगे मगर भूखे बच्चे को एक रोटी तक नही देते।
आखिर जब सब्से मिन्नतें करने पर भी उसे कुछ ना मिला तो वह बच्चा पानी पीने नदी के पास आ गया।नदी के उस पार एक घना जंगल था।बच्चे ने सोचा कि जरूर वहाँ कुछ ना कुछ खाने को तो मिल ही जायेगा।
परेशानी अब ये थी कि नदी पार कैसे करे??
तैरना उसे आता नही और कोई नाव पास में है नह
आखिर नदी पार करे तो कैसे करें??
यदि आप भी अपनी रचना प्रकाशित करवाना चाहते हैं या अपनी प्रस्तुति Sahitya Aajkal की Official Youtube से देना चाहते हैं तो अपनी रचना या वीडियो टीम के इस व्हाट्सएप नंबर 7562026066 पर मैसेज कर सम्पर्क करें।
बच्चा वही बैठ के ध्यान से नदी को देखने लगा तो पाया कि नदी में कुछ चट्टान तैर रहे है जिनकी दुरी समान है।उनका रंग सफेद और काला है।बच्चे ने दिमाग़ लगाया और सोचा कि अगर वह दोनों चट्टान पर सामंजस्य बिठाकर चले तो वह नदी पार कर लेगा।
वह नदी में उतरने लगा तभी आसपास में मौजूद लोग उसे रोकने लगे--अरे ओ मुर्ख!मरने का इरादा है क्या?इतनी गहरी नदी है।जा भाग यहाँ से
बच्चे ने उत्तर दिया"भूख से मर रहा हूं तब कोई पूछने नही आया और जब खुद ही भोजन तलाश में आगे बढ़ रहा हूं तो आप सब मुझे क्यों और किसलिए रोक रहे हैं।जब आप सब मेरी मदद नही कर सकते तो मुझे आगे बढ़ने से रोकने का या डराने का भी आपको कोई हक नही है....... जाओ भैया अपना काम करो
बच्चा उन सबकी बात को अनसुना करके धीरे धीरे सावधानी से आगे बढ़ने लगा।कभी सफेद चट्टान पर पैर् रखता तो कभी काले चट्टान पर।
इस तरह वह नदी पार कर गया और जंगल में जाकर आम, अमरुद, केला आदि फलों से अपनी भूख मिटाई। बच्चा उसी जंगल में रहने लगा।केले के तने से उसने एक साधन बना लिया जिससे नदी पार की जा सके।अब वह जंगल के सब्जी और फल नगर में लाकर बेच देता जिससे उसे बहुत आमदनी होने लगी।एक समय ऐसा भी आया जब वह बच्चा उस नगर के प्रतिष्टित लोगों में जाना जाने लगा।
यही जीवन है।इंसान अकेला भटकता रहता है लेकिन कोई उसकी मदद नही करता,,,,,, लक्ष्य का पता चलता है तब इंसान उधर जाने लगता है,,,,, लेकिन अब वही लोग उसे डराने और रोकने लगते हैं जिन्होंने उसकी मदद भी नही की।,,,,,,,नदी ,जीवन की वह कठिन राह है जिस पर चलकर ही मंजिल मिलेगी।जैसे जैसे हम नदी रूपी कठिन राह में आगे बढ़ेंगे तब हर कदम पर दो प्रकार के चट्टान मिलेंगे,,, एक सफेद और दूसरा काला।,,,,,,,,,सफ़ेद चट्टान है प्रशंसा या तारीफ और काली चट्टान है आलोचना या बुराई,,,,,, इन चट्टानों पर पैर् रख कर ही नदी पार की जा सकती है नही तो इस नदी रुपी कठिन राह में हम डूब जायेंगे।।
कौन क्या कहता है क्यों कहता है किसलिए कहता है ?? ध्यान मत दीजिये बस ध्यान दीजिए अपने लक्ष्य रूपी मंजिल पर,,,,,,,,, मंजिल मिलते ही आलोचक भी प्रशंसक बन जाते हैं।।
तारीफ से उछलिये मत और बुराई से डरिये मत।दोनों चट्टान पर सामंजस्य बिठाकर चलते जाइए मंजिल आपके कदमो में होगी।
✍️✍️ शिखा गोस्वामी
मारो, मुंगेली ( छत्तीसगढ़ )
Sahitya Aajkal:- एक लोकप्रिय साहित्यिक मंच 👇💞 Sahitya Aajkal Youtube Channel link plz Subscribe Now ...💞👇Sahitya Aajkal Youtube से जुड़ने के लिए यहाँ click करें
यदि आप भी अपनी रचना प्रकाशित करवाना चाहते हैं या अपनी प्रस्तुति Sahitya Aajkal की Official Youtube से देना चाहते हैं तो अपनी रचना या वीडियो टीम के इस Whatsapp न0- 7562026066 पर भेज कर सम्पर्क करें।
कवि सम्मेलन की वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
यदि आप कोई खबर या विज्ञापन देना चाहते हैं तो सम्पर्क करें।
संस्थापक:- हरे कृष्ण प्रकाश
(पूर्णियां, बिहार)