प्रियंका जायसवाल द्वारा रचित कहानी परोपकारिता की पराकाष्ठा एक बेहतरीन व मार्मिक कहानी है। जो वैस्टविल पब्लिशिंग हाउस नई दिल्ली से प्रकाशित हुई पुस्तक है। मैं आज आपके बीच इस कहानी के कुछ अंश सुनाने आया हूँ जिससे इस कहानी की लोकप्रियता और भी बढ़ जाती है।
परोप्करिता की पराकाष्ठा कहानी माघव नाम के एक ऐसे लडके की हैं जो बचपन से ही बहुत दयालु और परोप्कारी था ,माघव कभी किसी को परेशानी मे नहीं देख सकता था ,इसलिये अक्सर लोगो की समस्याओ का हल निकालाने की वजह से खुद ही परेशानी मे आ जाया करता था पर फिर भी जिस तरह हर इन्सान अपने स्वभाव से लाचार होता है उसी तरह माघव अपने परोकरिता से लाचार, घर वालो के लाख समझाने के बाद भी उसे छोड़ नही पा राहा था .
कहानी इन्दौर के लोहिया चौक के रेहने वाले दरोगा सूरज नारायण पांडे उनकी पत्नी रोशनी , मा सुभद्रा ,और तीन बच्चें संतोष , माघव और करुणा से शुरु होती है .
कहानी की सुरुवात मे बताया गया है कि जिस तरह सूरज रोशनी गोरे चिट्ठे सुंदर थे उसी तरह उसके तीनो बच्चें संतोष,माघव और करुणा पर कहते है ना जिस तरह एक हाथ की पांचों अंगूलिया एक तरह नही होती उसी तरह एक मा बाप के सभी बच्चें एक जैसे नही होते ,
जहाँ संतोष मेहनती तो था पर खुद से ही मतलब रखने वाला था ,वही माघव दयालु ,परोप्कारी अपने परीवार के साथ साथ दुसरो की भी मदत करने वाला था ,बेटी करुणा प्यारी बच्ची थी
जहाँ बचपन मे माघव ने बहन करुणा को खुद चोट खा कर बचाया ,वही कॉलेज के दिनो मे अपने पैसो से दोस्त परम को मेडिकल की पढ़ाई मे मदत कर एक अच्छे दोस्त होने का फर्ज निभाया ,
यही नही बल्की सब्ज़ि वाला निलू से ले कर पड़ोसी विमल राणा , दीपक चतुर्वेदि ,आर के सच देव. मुन्ना और ना जाने कितने अनगीनत् लोगो को माघव ने मदद की,
यहाॅं तक की डॉ० विवेक सन्देवाल् के पाव टूट जाने पर माघव ने और्थोपेदिक् डॉ० को दिखंवा उनकी सेवा कर उन्हे ठीक किया ,
इन सब परोप्करिता के वजह से उसे पैसो की तंगी हमेशा रहा करती थी जिस् वजह् से दिन प्रतिदिन् वह कर्ज़् मे दुब्ता गया,
यहाॅं तक की उनके माता, पिता,भाई,बहन,पत्नी सब से उनके अन बन होनी सुरु हो गये ,
यही नही दोस्तो अपने परोप्करिता के वजह से उसने अपने दामन मे दाग् तक लगाने से पीछे नही हटा ,उसने घर, संपत्ती सब कुछ परोकरिता पर कुर्र्बान कर दिया ,
परोप्करिता के वज़ह से उसकी पुरी जवानी संघर्षों से भर गई दोस्तो,
पर कहते है ना जिस तरह इन्सान को उसकी बुराईयो की सजा मिलती हैं उसी तरह एक ना एक दिन अच्छाइयों का परिणाम भी जरूर मिलता है,आखिरकार एक दिन माघव की जिंदगी मे उसकी खोई हुई खुशीया लौट कर वापस आती है,आज उसके पास घर, गाड़ी , बिजनेस परिवार का प्यार उसका साथ ये सब कुछ होता है,अब उसके पास किसी भी चीज की कमी नही होती है, हरेक खुसिया उसके पास होती है पर तब वह आत्महत्या कर लेता हैं!
दोस्तो पुरी जिंदगी के संघर्षों के बाद जब माघव की खोइ हुई सारी चिजे होती है ,तब् उसने आत्महत्या क्यू कि? ,क्यूकी माघव ने आत्महत्या ?
आईये जन्ने के लिए पढ़ते हैं "परोप्करिता की पराकाष्ठा"
अतः इस कहानी की हर एक पृष्ठ कुछ न कुछ जन जन को प्रेरित करने हेतु सन्देश देती है। इस कहानी को पूरा पढ़ने के लिए परोपकारिता की पराकाष्ठा पुस्तक अवश्य खरीदें।