भक्ति गीत : गणेश हृदय विराजो आज
प्रथम पूज्य देव का धारण करनेवाले ताज,
हे गणेश गजानन मेरे हृदय विराजो आज!
तुम घट घट के वासी और अविनाशी प्रभु,
हम अज्ञानी भक्तों से, होना नहीं नाराज।
प्रथम पूज्य देव……….
एकदंत महाराज, तेरी महिमा अपरंपार है,
जिस पर तेरी कृपा हो, बेड़ा उसका पार है।
तुम कृपालु और दीनदयालु हो इस जग में,
ऐसे ही बचाते रहना स्वामी, सबकी लाज।
प्रथम पूज्य देव………….
तेरे दरबार में रात दिवाली, दिन में होली,
जो भी शरण में आता भरके जाता झोली।
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता हो,
सुनते हो अमीर और गरीब सबकी आवाज।
प्रथम पूज्य देव………..
इस दुनिया में सबके कष्ट मिटाने वाले हो,
अपने हर भक्त पर, कृपा बरसाने वाले हो।
भोले भंडारी के लाल, करुणा के सागर हो,
बड़े आराम से करते हो देवा जग पर राज।
प्रथम पूज्य देव………..
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)
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