कौन, किसी को याद करता है,
हर कोई फर्ज अदा करता है।
झूठे आँसू,दुःखभरा चेहरा,
हर कोई अपना दिखा देता है।
कौन किसी को याद करता है,
हर कोई फर्ज अदा करता है।
कितनों ने था लहू बहाया,
कितनों ने थी जानें गवाई,
दो आँसु तब सबने बहाया,
हर दिन बस यह फर्ज निभाया।
क्या हालात उन परिवारों के,
किस हालत में वो रहते हैं।
इन बातों को कौन जानता!
इतना दर्द कौन,किसका लेता है,
कौन किसी को याद करता है,
हर कोई फर्ज निभा देता है।
हम सब अपना हित देखतें हैं,
हित बाधित हो क्रोधित होतें हैं,
धरने-प्रदर्शन सब करतें हैं,
पर जब बात कर्त्तव्यों की हो,
तो अपना मुँह सी लेते हैं ।
सोचो अगर ये बलिदानी भी,
अपना-अपना हित ही देखतें,
देश के वीर सेनानी भी ,
अपने हित पर ही मर-मिटते,
तो फिर आज देश क्या होता?
आज क्यों फर्ज अदा करता है?
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हिमांशु पाठक,
"पारिजात",
ए-36,जज-फार्म,
छोटी मुखानी
नैनीताल,उत्तराखंड
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