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7/24/22

तुम एक शांत सरोवर हो (तुम- गीतू माहेश्वरी )


 तुम 

मैं अंतर मन सी चंचल हूँ 

तुम एक शांत सरोवर  हो।


मै लौ सम हूँ यदि दीपक की 

तुम प्रकाश पुंज से उज्जवल हो।


मैं ठहरी ओस की बून्द सी हूँ 

तुम बरखा के जैसा जल हो।


मैं गीली मिट्टी की सुगंध 

तुम सावन का बादल हो।


मैं आँखों मेँ पानी सी ठहरी 

तुम मेरे  ह्रदय मेँ संबल हो।


मैं स्वयं को क्या परिभाषा दू 

तुम सेतेह ह्रदय की तुम तल हो।


मैं घर के आँगन की तुलसी 

तुम उस तुलसी का जल हो।


मैं आंच बनु जो चूल्हे की 

तुम राशन हो तुम अन्न जल हो।


मैं घूंट घूंट भर पानी हूँ 

तुम तो गागर मेँ सागर हो।


माना मैं फुलवारी घर की 

तुम मेरा पूरा घर हो।।

स्वरचित गीतू माहेश्वरी अलीगढ़ यू.पी.

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