"पलायन..." 90 के दशक का मेरा खुद का वो दर्द जिसे मैं दफन कर चुका था लेकिन पिछले कुछ दिनों में ये दोबारा जन्म ले लिया है!!! ... चंद लाइनें उनके लिए समर्पित करना चाहता हूं ...!!
"कहां से चला है, कहां तक चलेगा,
ऐ राही तू मन को कब तक छलेगा,
घने तम का मंजर है... मंजर ही आगे...
भंवर में फसा है, समर में ठहर जा !
मीलों की दूरी, ना परवाह कोई,
न पैरों के छालों की अब..."आह" कोई,
दुनियां को सर पे अकेले ही लेकर,
इस लंबे सफर की, ना अब थाह कोई !
तेरी आशा भी टूटी, निराशा भी टूटी,
संजोकर रखा, हर दिलाशा भी टूटी,
उठा जो धुआं, सब जलने लगा "धू - धू"
किस्मत भी तेरी तमाशा बन रूठी !!
बगल में दो बच्चे सिसकते - कहरते,
कदम - दर - कदम बढ़ते, गिरते फिसलते,
ममता का आंचल पकड़ते - पकड़ते,
चले जा रहे यूं ही रोते बिलखते !!!
'ऐ मालिक' रहमकर...रहमकर तू आजा,
पड़ी भारी विपदा... करमकर तू आजा,
बड़ी है मुसीबत, प्रलय ही प्रलय है,
दो दर्शन "सुदर्शन"...गोवर्धन उठा जा, गोवर्धन उठा जा !!!!
"हे प्रभु, आज सम्पूर्ण मानवजाति पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा है!!! मनुष्य एक बार फिर अपनी क्षमताओं के अथक प्रयोग के बाबजूद हारा हुआ महशुश कर रहा है और एक बार पुनः आपको पुकार रहा है...!!!! हरि ओम !!!
✍️ "जय कृष्ण"
(झारखंड)
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