न जाने क्या मुझसे ये,जमाना चाहता है?
मेरा ही दिल तोडकर, हंसाना चाहता है!
जाने क्या झलकती है, हमारे चेहरे से!
हर शख्स क्यों अब मुझे ही, सताना चाहता है!"
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प्रस्तुत है मेरी कविता:- जान गंवाना बांकी है
"जान गंवाना बांकी है:"
"हौले-हौले चल ऐ जिन्दगी,
कुछ दरद बंटाना बांकी है !
कुछ और समय देदे मुझको,
कुछ करज चुकाना बांकी है !
तेजी में तेरे चलने से,
कुछ रूठे ओ कुछ छूट गये !
सबको तो मनाना मुश्किल है,
अब तुम्हें हंसाना बांकी है !
दुनिया ने मुझे जो दर्द दिया,
जीवन भर उसको याद रखा !
अपने जीवन के सत्कर्मों से,
कुछ मरज हटाना बांकी है !
कुछ चाह अब भी अधूरी है,
कई काम अभी जरूरी है!
इस मन की प्यास अधूरी जो,
उसको निबटाना बांकी है !
रिश्ते और नाते छूट गये,
कुछ जुड़ते-जुड़ते टूट गये !
अनसुलझे प्रेम के रिश्तों को,
अबभी सुलझाना बांकी है !
तुम कैसी अपनी काव्यसखा,
क्या छोड़ तुझे जी पाऊंगा ?
सांसो पर तेरा नाम लिखा,
तुझको समझाना बांकी है!
यादों के गम ने है मारा,
कहां फिरूं? सूझता ही नहीं!
क्यों-कैसे तुमसे नेह लगा ?
ये प्यार निभाना बांकी है!
बिन पंख पखेरू उड़े कैसे ?
वह कौन निर्मोही है आया ?
इक हवा-हवाई बन भागी,
अब प्यास मिटाना बांकी है !
क्या-क्या न सुना तेरे खातिर,
अपमान गरल भी पिया हूँ!
अपवाद कभी जब भी उठता,
अपनी छाया से ढांकी है!
इस श्वेत-स्नेह का ''साक्षी' जो,
अब वो भी है अनजान बनी !
व्यवसाय के संग सम्मान घटा,
अब उसे जमाना बांकी है!
मैं समझ रहा तुम बेबस हो,
अपनी मनमानी करने को !
जब याद करोगी आऊंगा,
ये आन निभाना बांकी है!
बस यही मशविरा देता हूं,
धोखा न किसी को तुम देना!
दिल्लगी न हरदम किया करो,
अब जान गंवाना बांकी है! -
✍️ डा.के.के.चौधरी:(कमल वियोगी )
डॉक्टर सह कवि (पुर्णियाँ, बिहार)
Blogging By:- हरे कृष्ण प्रकाश (युवा कवि)
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