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4/3/20

जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत को लिखें। Jin piyaje By:- हरे कृष्ण प्रकाश

प्रशन :-  जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत को लिखें।
                                   अथवा, 
प्रशन :- जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकाश के सिद्धान पर प्रकाश डालें।


उत्तर:- जीन पियाजे का जन्म स्विट्जरलैंड में सन 1896 ई0 में हुई थी। वह एक ऐसे महान मनोवैज्ञानिक हुए जिनकी अवधारणा को आज तक काफी महत्वपूर्ण माना जाता है, साथ ही इसे पढ़कर सभी शोधार्थी अपना शोध कार्य पूर्ण करते हैं। मनोवैज्ञानिकों में सबसे लोकप्रिय मनोवैज्ञानिक जीन पियाजे ही हैं।

जीन पियाजे ने संज्ञान विकास का एक नवीन सिद्धांत प्रस्तुत किया है। जिसे जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत कहा जाता है। इनके अनुसार संज्ञानात्मक विकास की अवधारणा आयु ना होकर बालक द्वारा चाही गई अनुक्रिया से दूसरी अनुक्रिया तक पहुंचने की निश्चित प्रगति है।

इसका आशय यह होता है कि जब बालक जब किसी एक क्रिया को करता है तो जो भी बातों को वह सीखता है, उसके बाद ही वह दूसरी क्रिया करता है। बालक अपने बाद की अवस्था की क्रिया का परिणाम और अनुक्रिया का परिणाम को बिना अभ्यास किए नहीं कर सकता है।

इस संबंध में एक विशिष्ट मनोवैज्ञानिक आलबेस की बातें निम्न है- यूं तो जीन पियाजे ने जंतु विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की सन 1920 ई0 में वे पेरिस की विनीत टेस्टिंग प्रयोगशाला के साथ जुड़ गए बच्चों के साथ प्रेक्षण विच्छेदन तथा प्रयोग करते हुए उन्होंने ज्ञानात्मक विकास या बालबोध ग्रहण के संबंध में अपने शैक्षणिक सिद्धांत का प्रतिपादन किया।

जीन पियाजे जी ने अपना अध्ययन अपनी ही तीन संतानों का परीक्षण करते हुए आरंभ किया। इस शुरुआत के क्रम में उन्होंने आगे अन्य बच्चों पर भी अध्ययन किया।
                                 
जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांतों के कुछ महत्वपूर्ण सम्प्रत्य:-

जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत की व्याख्या की कुछ महत्वपूर्ण संप्रत्यय इस प्रकार हैं-

1 अनुकूलन :-   जीन पियाजे के अनुसार बालकों में वातावरण के साथ सामंजस्य करने की जन्मजात प्रवृत्ति होती है। जिसे अनुकूलन कहा जाता है। उन्होंने अनुकूलन प्रक्रिया की धूप क्रियाएं को बताए हैं। जिसमें पहला आत्मसात करण तथा दूसरा समायोजन है। इन दोनों में समानताएं यह है कि यह दोनों ही उप उप क्रियान्वयन एवं वातावरण की वस्तुओं के बारे में सूचना प्राप्त करने की मूल योजना है। जैसे यदि कोई बालक जानता है कि कुत्ता क्या होता है परंतु एक बिल्ली को देखकर जब वह अपने मानसिक संपर्क के में परिवर्तन कर दिल्ली की कुछ अलग विशेषताओं पर गौर करता है तो यह अनुकूलन समायोजन का उदाहरण है।

2 साम्याधारण:- साम्याधारण संप्रत्यय अनुकूलन के संप्रत्यय से मिलता-जुलता है साम्याधारण एक ऐसी प्रक्रिया है। जिसके माध्यम से बालक इन दोनों अर्थात साम्याधारण तथा अनुकूलन दोनों के बीच संतुलन कायम करता है।  इस अवधारणा के तहत बालक में स्वयं को नियंत्रित करने की प्रेरणा प्राप्त होती है साथ ही बालक खुद को नियंत्रित करते हैं जीन पियाजे साहब का कहना है कि बालकों के बीच कभी ऐसी घटनाएं भी सामने आ जाती है जिसका उसे पहले से अनुभव नहीं रहता है। उसमें एक तरह का संज्ञानात्मक असंतुलन उत्पन्न हो जाता है।  जिससे संतुलन में लाने के लिए दोनों ही प्रक्रियाओं को प्रारंभ कर देता है।

3 संरक्षण:-  जीन पियाजे के सभी सिद्धांतों में से महत्वपूर्ण अवधारणा का तात्पर्य यह होता है कि बालक को अपने वातावरण में परिवर्तन और स्थिरता दोनों को पहचानने की क्षमता का विकास होता है।  इसके साथ रूप हो तथा रंगों में अंतर को समझता है, साथ ही वह वस्तुओं में परिवर्तन से अलग करने की क्षमता से होता है। इस सिद्धान पर विश्व के अत्यधिक मनोवैज्ञानिक ने शोध किया है।

4 संज्ञानात्मक संरचना:- किसी बालक के मानसिक संरचना का तात्पर्य होता है कि उसके अंदर की मानसिक संगठन तथा उसकी मानसिक क्षमताओं के सेट को संज्ञानात्मक संरचना का सिद्धांत कहा जाता है।

5 मानसिक संक्रिया:- जब कोई बालक किसी समस्या का समाधान हेतु चिंतन करता है तो उसे मानसिक संक्रिया करता हुआ समझा जाता है यह पियाजे के सिद्धांत का चिंतन ही प्रमुख साधन है।

6 स्कीम्स:-  जीन पियाजे के अनुसार स्कीम्स का आशय यह है कि बालक का अपने जीवन में व्यवस्थित रहना अर्थात एक उच्चतम रूटीन को पालन करना।  इसे ही स्कीम्स कहा जाता है, जो मानसिक संक्रिया से संबंधित होता है।

7 स्कीमा :- यह स्कीम से से बिल्कुल अलग ही सम्प्रत्य है इसके अनुसार इसका अर्थ यह है कि किसी बालक के मानसिक संरचना को समझा जा सकता है स्कीमा जीन पियाजे का महत्वपूर्ण संप्रत्यय माना जाता है।

8 विकेन्द्रन:- जीन पियाजे के अनुसार विकेन्द्रन क्या अर्थ होता है कि किसी भी वस्तु या कोई भी चीज के बारे में सही तरीकों से सोचने की क्षमता से का विकास होता है जीन पियाजे का कहना था कि जब बालक 3 या 4 महीने का होता है तो उसमें यह क्षमता नहीं होती है परंतु जब बालक 23 या 24 महीने का हो जाता है तो उसमें सभी गुणों का विकास हो जाता है  तथा सही ढंग से सोचने की क्षमता विकसित हो जाती है।



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                                  हरे कृष्ण प्रकाश