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5/16/21

फणीश्वरनाथ रेणु जी का जीवन परिचय :- हरे कृष्ण प्रकाश

फणीश्वरनाथ रेणु जी का जीवन परिचय  :- हरे कृष्ण प्रकाश

फणीश्‍वर नाथ रेणु जी का जन्म 4 मार्च 1921 ई0 को भारत देश के बिहार राज्य स्थित पूर्णियाँ जिले के औराही हिंगन्ना, नामक ग्राम में हुआ था। वर्तमान में यह ग्राम पूर्णियाँ से सटे अररिया जिला में स्तिथ है।

          


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मित्रों सम्पूर्ण भारत के लेखकों की जीवनी से आप सभी को रूबरू कराने के उद्देश्य से ही यह आर्टिकल लिखी जा रही है मुझे उम्मीद है कि आप पूरा आलेख पढ़ कर अवश्य लाभान्वित होंगे। आज के साहित्यकारों से रूबरू आलेख भाग :- 01 में आप जानेंगे फणीश्वरनाथ रेणु जी का सम्पूर्ण जीवन परिचय।


-:  फणीश्वरनाथ रेणु जी का सम्पूर्ण जीवन परिचय  :- 

फणीश्‍वर नाथ रेणु जी का जन्म 4 मार्च 1921ई0 को बिहार स्थित पूर्णियाँ जिले के औराही हिंगन्ना, नामक ग्राम में हुआ था। वर्तमान में यह ग्राम पूर्णियाँ से सटे अररिया जिला में स्तिथ है।


फणीश्वर नाथ रेणु जी की  प्रारंभिक शिक्षा फॉरबिसगंज तथा अररिया में पूरी करने के बाद इन्होने मैट्रिक तक कि तैयारी नेपाल के विराटनगर के विराटनगर आदर्श विद्यालय से कोईराला परिवार में रहकर की। इसके बाद उच्च शिक्षा पाने हेतु इन्होने इन्टरमीडिएट काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1942 में की। देश में हो रहे आंदोलनों से प्रभावित होकर वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पङे । 



बाद में 1950 में उन्होने नेपाली क्रांतिकारी के आन्दोलन में भी हिस्सा लिया जिसके परिणामस्वरुप नेपाल में जनतंत्र की स्थापना हुई । उन्होने हिन्दी जगत में आंचलिक कथा की नींव रखी । महान साहित्यकार सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन "अज्ञेय" जी, उनके समकालीन कवि और परम मित्र थे ।


इनकी कई रचनाओं में कटिहार रेलवे स्टेशन का उल्लेख देखने को मिलता है। 


-: फणीश्वरनाथ रेणु जी का लेखन-शैली:- 


इनकी लेखन-शैली वर्णणात्मक होती  थी जिसमें प्रत्येक पात्र के मनोवैज्ञानिक सोच का विवरण लुभावने तरीके से किया होता था । इनके रचनाओं में पात्रों का चरित्र-निर्माण काफी तेजी से होता था।  इनकी लगभग हर कहानी में पात्रों की सोच घटनाओं से प्रधान होती थी । उदाहरण के लिए हम कह सकते हैं कि एक आदिम रात्रि की महक इसका एक सुंदर उदाहरण है । 


फणीश्वरनाथ रेणु जी की लेखन-शैली प्रेमचंद जी से काफी मिलती थी और इन्हें आजादी के बाद का प्रेमचंद की संज्ञा भी दी जाती है । अपनी कृतियों में उन्होने आंचलिक पदों का बहुत प्रयोग किया है । अगर आप उनके क्षेत्र से हैं अर्थात कोशी के क्षेत्र से हैं तो ऐसे शब्द, जो आप निहायत ही ठेठ या देहाती समझते हैं, भी देखने को इनकी रचनाओं में मिल सकता है।



आप आजीवन शोषण और दमन के विरूद्ध संधर्षरत रहे। इसी प्रसंग में सोशलिस्ट पार्टी से जा जुड़े व राजनीति में सक्रिय भागीदारी की। 1942 के भारत-छोड़ो आंन्दोलन में सक्रिय भाग लिया। 1950 में नेपाली दमनकारी रणसत्ता के विरूद्ध सशस्त्र क्रांति के सूत्रधार रहे। 1954 में 'मैला आँचल' उपन्यास प्रकाशित हुआ तत्पश्चात् हिन्दी के कथाकार के रूप में अभूतपूर्व प्रतिष्ठा मिली। जे० पी० आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी की और सत्ता द्वारा दमन के विरोध में पद्मश्री का त्याग कर दिया।


-: फणीश्वरनाथ रेणु जी का लेखन कार्य:-


फणीश्वरनाथ रेणु ने कहानी लिखने की शुरुआत 1936 से की। उस समय कुछ कहानियाँ प्रकाशित भी हुई थीं। 

                          फणीश्वरनाथ रेणु जी 1942 के आंदोलन में गिरफ़्तार होने के बाद जब वे 1944 में जेल से मुक्त हुए, तब घर लौटने पर उन्होंने 'बटबाबा' नामक पहली परिपक्व कहानी लिखी। 'बटबाबा' 'साप्ताहिक विश्वमित्र' के 27 अगस्त 1944 के अंक में प्रकाशित हुई। रेणु की दूसरी कहानी 'पहलवान की ढोलक' 11 दिसम्बर 1944 को 'साप्ताहिक विश्वमित्र' में छ्पी। 1972 में रेणु ने अपनी अंतिम कहानी 'भित्तिचित्र की मयूरी' लिखी। उनकी अब तक उपलब्ध कहानियों की संख्या 63 है। 'रेणु' को जितनी प्रसिद्धि उपन्यासों से मिली, उतनी ही प्रसिद्धि उनको उनकी कहानियों से भी मिली। 'ठुमरी', 'अगिनखोर', 'आदिम रात्रि की महक', 'एक श्रावणी दोपहरी की धूप', 'अच्छे आदमी', 'सम्पूर्ण कहानियां', आदि उनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं।


-: रेणु जी के कहानी पर आधारित फ़िल्म 'तीसरी क़सम':- 


उनकी कहानी 'मारे गए गुलफ़ाम' पर आधारित फ़िल्म 'तीसरी क़सम' ने भी उन्हें काफ़ी प्रसिद्धि दिलवाई। इस फ़िल्म में राजकपूर और वहीदा रहमान ने मुख्य भूमिका में अभिनय किया था। 'तीसरी क़सम' को बासु भट्टाचार्य ने निर्देशित किया था और इसके निर्माता सुप्रसिद्ध गीतकार शैलेन्द्र थे। यह फ़िल्म हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर मानी जाती है। कथा-साहित्य के अलावा उन्होंने संस्मरण, रेखाचित्र और रिपोर्ताज आदि विधाओं में भी लिखा। उनके कुछ संस्मरण भी काफ़ी मशहूर हुए। 'ऋणजल धनजल', 'वन-तुलसी की गंध', 'श्रुत अश्रुत पूर्व', 'समय की शिला पर', 'आत्म परिचय' उनके संस्मरण हैं। इसके अतिरिक्त वे 'दिनमान पत्रिका' में रिपोर्ताज भी लिखते थे। 'नेपाली क्रांति कथा' उनके रिपोर्ताज का उत्तम उदाहरण है।


-: फणीश्वरनाथ रेणु जी का साहित्यिक कृतियाँ :- 

रेणु जी को जितनी ख्याति हिंदी साहित्य में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली, उसकी मिसाल मिलना दुर्लभ है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। कुछ आलोचकों ने इसे गोदान के बाद इसे हिंदी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित करने में भी देर नहीं की। हालाँकि विवाद भी कम नहीं खड़े किये उनकी प्रसिद्धि से जलनेवालों कई लोग इसे सतीनाथ भादुरी के बंगला उपन्यास 'धोधाई चरित मानस' की नक़ल बताने की कोशिश की पर समय के साथ इस तरह के झूठे आरोप ठन्डे पड़ते गए। अन्ततः अब हर कोई जानता है कि मैला आँचल के लेखक रेणु जी ही हैं।


रेणु के उपन्यास लेखन में मैला आँचल और परती परिकथा तक लेखन का ग्राफ ऊपर की और जाता है पर इसके बाद के उपन्यासों में वो बात नहीं दिखी जल मैला आँचल में दिखी थी।


-: प्रमुख रचनाएं:- 


मैला आंचल, परती परिकथा, ठुमरी, जूलूस, दीर्घतपा, कितने चौराहे, पलटू बाबू रोड, एक आदिम रात्रि की महक, अग्निखोर, अच्छे आदमी, रिपोर्ताज, ऋणजल-धनजल, नेपाली क्रांतिकथा, वनतुलसी की गंध, श्रुत अश्रुत पूर्वे,प्रसिद्ध कहानियाँ, मारे गये गुलफाम, एक आदिम रात्रि की महक, लाल पान की बेगम, पंचलाइट,ठेस, संवदिया

फणीश्वरनाथ रेणु जी का देहांत- 11 अप्रैल, 1977 को पटना में इन्होंने अंतिम सांस ली।


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