शीर्षक:-"झंडे की आड में" by:- प्रवीण पण्ड्यां
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शीर्षक:-"झंडे की आड में"
सन्नाटो में आज सिसकियाँ लेती है।
भारत की ऑधी में बर्बादी होती है।
जीवन में सरकारे आती जाती है।
हिम्मत की हथियार नही वो खोलती है।
अंधो की ये भोली-भाली जनता है।
जुल्मो की हाथ कड़ियों की ये जनता है।
झुठ छल, और कपट का ये बोलबाला है।
जीवन में दुःखो का ये बोलबाला है।
कल के गरिब आजअमीर बन बेठे हैं।
दुसरो के दुःख को वो नही समझते है।
मन के भावो को नहीं वो अपनाते है।
जीवन के संघर्षो को नही वो सुझाते है।
आज तुम क्या बात करोगे जनता है।
झंडे की आड मे देश के वासी है।
देश की सरहदो पर हमला बाकी है।
मरने वाले शहीद हुए लाश बाकी है।
बेटी बहुए आज जो वो जागरूक है।
पढ़ी लिखी ये घर की जो मुरत है।
अंधेरे के गलियारो की ये सुरत है।
आज भारत की प्रगति की ये मुरत है।
✍️प्रवीण पण्ड्यां
डुंगरपुर राजस्थान
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