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9/3/21

झुठला ना सकी:- मधु अरोरा

झुठला ना सकी

 

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झुठला ना सकी:- मधु अरोरा

   आज मैंने दर्पण को देखा

    तो झूठला ना सकी।

    उम्र के पड़ाव को

    समझाती रही।

    कुछ लोगों की बातें

    कुछ प्यार कुछ मोहब्बत

    बता ना सकी।

    मैंने दर्पण को देखा

    झूठ ला ना सकी ।

    बालों की सफेदी 

    आंखों का चश्मा

     गुम हुई जवानी 

     कुछ कह ना सकी 

     मैंने दर्पण को देखा 

     झुठला ना सकी ।

     कुछ हंसी कुछ खुशी 

     कुछ दर्द के अहसास 

     दबा‌ ना सकी 

     दर्पण से मैं कुछ 

     छुपा ना सकी।

     दर्पण झूठ कहां बोलता है।

      मन के सारे 

     भाव वह खोलता है।

                रचनाकार 

✍️मधु अरोरा

      (  दिल्ली )

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