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3/26/25

डोमिसाइल का रण (कविता)- हरे कृष्ण प्रकाश

डोमिसाइल मुद्दे पर हरे कृष्ण प्रकाश की कविता "डोमिसाइल का रण" समकालीन बिहार की उस ज्वलंत समस्या को स्वर देती है, जहां युवाओं का संघर्ष, आक्रोश और स्वाभिमान मुखर होकर सामने आता है। यह कविता न केवल एक साहित्यिक रचना है, बल्कि एक आंदोलन का घोषवाक्य बनकर समाज के हृदय को झकझोर देती है।

 शीर्षक:- डोमिसाइल का रण - हरे कृष्ण प्रकाश

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नेताओं ने हक हमारा मिटा दिया,

अपनों के घर को ही लुटा दिया,

जो डोमिसाइल को यूं रौंद गए,

माई-बापू के सपनों को तोड़ गए,

अब वही फिर क़ानून बनाएगा,

या उनका भी तक़दीर रौंदा जाएगा!


खेतों में हमने ही खून बहाया,

पिता ने घर को गिरवी रखवाया,

फिर भी हक हमारा लुटा कर,

गैरों को ही वो अपना बनाया।


अब ना झुकेंगे, ना हम रुकेंगे,

सड़कों पर बन तूफ़ान चलेंगे,

जिन हाथों ने छीना अधिकार,

वही देंगे अब न्याय का वार!


जब तक ये सांसें चलती रहेंगी,

बिहार की माटी कभी ना झुकेगी,

जो हटाया, वही फिर लगाएंगे,

डोमिसाइल का हक हमें दिलाएंगे!

✍️ सृजनकार:- हरे कृष्ण प्रकाश

        (युवा कवि, पूर्णियां)


शीर्षक :- डोमिसाइल का रण

लेखक/कवि -हरे कृष्ण प्रकाश 

संपर्क:- 9709772649 (व्हाट्सएप)

ईमेल :- harekrishnaprakash72@gmail.com 

विधा :- कविता 

कॉपीराइट :- Sahitya Aajkal 

प्रकाशित तिथि :- 26/03/25

संदर्भ :- #बिहार_मांगे_डोमिसाइल


नोट:- अपनी रचना प्रकाशन या वीडियो साहित्य आजकल से प्रसारण हेतु साहित्य आजकल टीम को 9709772649 पर व्हाट्सएप कर संपर्क करें, या हमारे अधिकारीक ईमेल sahityaaajkal9@gmail.com पर भेजें।

                 धन्यवाद :- साहित्य आजकल टीम 


समीक्षा आलेख:

शीर्षक: डोमिसाइल का रण: युवाओं के संघर्ष की गूंज

कवि: हरे कृष्ण प्रकाश

विधा: कविता

संदर्भ: #बिहार_मांगे_डोमिसाइल

✍️ भूमिका:

कविता साहित्य का वह सशक्त माध्यम है, जो समाज की संवेदनाओं, आक्रोश और उम्मीदों को अभिव्यक्त करता है। हरे कृष्ण प्रकाश की कविता "डोमिसाइल का रण" समकालीन बिहार की उस ज्वलंत समस्या को स्वर देती है, जहां युवाओं का संघर्ष, आक्रोश और स्वाभिमान मुखर होकर सामने आता है। यह कविता न केवल एक साहित्यिक रचना है, बल्कि एक आंदोलन का घोषवाक्य बनकर समाज के हृदय को झकझोर देती है।

कविता की विषयवस्तु:

यह कविता डोमिसाइल नीति के इर्द-गिर्द रची गई है, जो बिहार के युवाओं के हक और अधिकार की मांग को बुलंद करती है। इसमें नेताओं की दोहरी नीतियों, अपनों के साथ हुए विश्वासघात और संघर्ष की भावना को बड़े ही प्रभावी ढंग से व्यक्त किया गया है।

प्रथम छंद: नेताओं के छल और जनता के अधिकारों के हनन की पीड़ा को अभिव्यक्त करता है:

"नेताओं ने हक हमारा मिटा दिया,

अपनों के घर को ही लुटा दिया।"

ये पंक्तियां राजनीतिक विश्वासघात को उजागर करती हैं।


द्वितीय छंद: किसानों और युवाओं की मेहनत, बलिदान और उनके छले जाने का चित्रण करती है:

"खेतों में हमने ही खून बहाया,

पिता ने घर को गिरवी रखवाया।"

इन पंक्तियों में उस दर्द को व्यक्त किया गया है, जहां अपने ही हक से वंचित होने का आक्रोश है।


तृतीय छंद: युवाओं के संघर्ष और संकल्प का घोषणापत्र बनकर सामने आता है:

"अब ना झुकेंगे, ना हम रुकेंगे,

सड़कों पर बन तूफ़ान चलेंगे।"

ये पंक्तियां युवाओं के आंदोलनकारी तेवर को दर्शाती हैं।


चतुर्थ छंद: विजय और न्याय का उद्घोष करती है:

"जब तक ये सांसें चलती रहेंगी,

बिहार की माटी कभी ना झुकेगी।"

इन पंक्तियों में युवाओं का अडिग संकल्प और मातृभूमि के प्रति समर्पण झलकता है।

 काव्य सौंदर्य:

1. भाषा और शैली:

कविता की भाषा सहज, प्रवाहपूर्ण और ओजस्वी है।

सरल शब्दों में गहरी संवेदना को व्यक्त किया गया है, जिससे यह आमजन की भावना को सहजता से छूती है।

2. प्रतीक और बिंब:

"खेतों में हमने ही खून बहाया" – यह पंक्ति किसानों के परिश्रम और संघर्ष का प्रतीक है।

"सड़कों पर बन तूफ़ान चलेंगे" – यह पंक्ति आंदोलन की तीव्रता और जनसैलाब की शक्ति को दर्शाती है।

3. तुकबंदी और लय:

कविता में तुकबंदी सटीक और प्रभावशाली है, जो इसे कर्णप्रिय और मंचीय पाठ के लिए उपयुक्त बनाती है।

जैसे:

"अब ना झुकेंगे, ना हम रुकेंगे,

सड़कों पर बन तूफ़ान चलेंगे।"

दोहराव का प्रयोग कविता को और अधिक प्रभावी बनाता है।

 कविता की विशेषताएँ:

* समकालीन मुद्दे पर आधारित:

यह कविता बिहार के युवाओं के संघर्ष और डोमिसाइल नीति की मांग को बुलंद करती है, जो इसे अत्यंत प्रासंगिक बनाती है।

* ओजपूर्ण शैली:

कविता में ओजस्वी और संघर्षशील भाषा का प्रयोग किया गया है, जो पाठकों को झकझोरने का काम करती है।

* आंदोलनकारी स्वर:

कविता में आक्रोश, पीड़ा और संकल्प का स्वर स्पष्ट रूप से मुखर होता है, जो इसे एक प्रभावी जनकविता का रूप देता है।

* भावनात्मक अपील:

"पिता ने घर को गिरवी रखवाया" जैसी पंक्तियाँ पाठकों को भावुक कर देती हैं और उनकी संवेदनाओं को जागृत करती हैं।

📝 समीक्षा निष्कर्ष:

हरे कृष्ण प्रकाश की कविता "डोमिसाइल का रण" न केवल एक भावनात्मक कविता है, बल्कि यह युवाओं के संघर्ष और संकल्प का घोषणापत्र भी है। इसमें सामाजिक अन्याय के खिलाफ एक हुंकार है, जो पाठकों को आंदोलित करने का सामर्थ्य रखती है।

* कविता की सशक्त भाषा, भावनात्मक अपील और ओजस्वी शैली इसे न केवल मंचीय पाठ के लिए उपयुक्त बनाती है, बल्कि यह एक आंदोलन का प्रतीक बनकर जनमानस को झकझोरने का कार्य भी करती है।

✅ कविता का संदेश:

"डोमिसाइल का रण" युवाओं की आवाज़ है, जो संघर्ष, साहस और न्याय का प्रतीक बनकर उनके हक की लड़ाई में एक शंखनाद करती है।

👏 यह कविता अपने ओजपूर्ण स्वर और सशक्त भाषा के कारण पाठकों के मन में एक स्थायी प्रभाव छोड़ती है।