बहर: _रजझ मुसम्मन मतवी मख्बून
तक्ती: _2 1 1 2 1 2 1 2 2 1 1 2 1 2 1 2_*
🌹💕🇮🇹💓👍🌺
जो तुझे ना पसंद हो छोड़ दूं मैं वो हरकतें,
तुम बरसों पुरानी वो तोड़ दो सारी नफ़रतें ।
ये दिल हर घड़ी तुझे ही बस चाहता है, जो
तेरे दीदार से पूरी हो जाएं मेरी हसरतें ।
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तब-से हीं ज़िंदगी में मैंने बस तुम्हें पा लिया,
फूल - सी मंद - मंद जब देख तुझे महकतें ।
ये अंखियां सनम ! जो करते इंतजार थक गई,
आई घड़ी मिलन की तुझे कहां थीं जो फ़ुरसतें ।
दिल में कहीं नहीं शिकायत महेबूब ए- ‘तिर्यंच’
आंख से अश्क़ लहु बनकर अब जो हैं बरसतें ।
*-- जितेन्द्रकुमार बि. बिलवाल ‘तिर्यंच’*
(दाहोद, गुजरात)
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(पूर्णियां, बिहार)