शीर्षक:- "तू अगर चाहती तो मेरी" By:- Nik Rajput
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शीर्षक:- "तू अगर चाहती तो मेरी" By:- Nik Rajput
तू अगर चाहती तो मेरी
खामोशिया तोड़ सकती थी
तू अगर चाहती तो मेरी इस
तन्हाई को सुकून दे सकती थी
तू अगर चाहती तो मेरी
तकदीर बदल सकती थी
तू अगर चाहती तो इस दिल मे
अपना मका बना सकती थी
तू अगर चाहती तो हाथो की
लकीरों को बदल सकती थी
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तू अगर चाहती तो हमे इस
हाल पर छोड़ नही सकती थी
तू आगर चाहती तो हमे फिर
अपना हमसफ़र बना सकती थी
तू अगर चाहती तो हमे अपनी
दुआओ में मांग सकती थी
तू अगर चाहती तो हमे अपने
माथे का सिंदूर बना सकती थी
तू अगर चाहती तो फिर मेरा
हाथ थाम कर चल सकती थी
तू अगर हाथ थाम कर चलती
तो मेरी दुनिया बदल सकती थी
✍️ Nik Rajput
गुजरात
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