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5/19/20

दर्द है फैली हवा में -By:- राजीव कुमार रंजन


Sahitya Aajkal:- हरे कृष्ण प्रकाश (युवा कवि)
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शीर्षक:- दर्द है फैली हवा में

दर्द है फैली हवा में,
फिजा भी ये चीखता सा है।
जरा बच के रहना संस्कृति के रक्षकों,
ये दौर आधुनिकता का है।।

अब ना मिलेगी चरण छूने की संस्कृति,
अब है हाय- हेलो की आपकृति।
दादी नानी की कहानी खो गई,
वाट्सएप, फेसबुक में,
माँ की लोरी ही सो गई।
अपने आत्म गौरव को खोता अब,
ये देश दिखता सा है।
जरा बच के रहना संस्कृति के रक्षकों,
ये दौर आधुनिकता का है।।

अब कहाँ है बाबू गांधी,
कहाँ सरदार पटेल इस जहान में है।
अब तो दिखते अलग ही रूप,
इस नए हिंदुस्तान में है।।
जिसके श्रवण कुमार की कृति,
फैली सारे जहान में है।
आज छाँव को तरसते बागवान,
उसी हिंदुस्तान में है।।

अब जूते शीशे में और
किताबे फुटपाथ पर बिकता सा है।
जरा बच के रहना संस्कृति के रक्षकों,
ये दौर आधुनिकता का है।।

कहते हैं ये दौर विकास का परिणाम है,
जहाँ हम आधुनिकता में घुल रहे हैं,
जरा दिल पर हाथ रख कर सोंचना,
क्यों हम इस विकास में,
मानवता को भूल रहे हैं।
नहीं चाहिए वो विकास जो,
इंसान को हैवान बना दे।
बस एक यही आरजू , यही मिन्नत कि,
आये वो दौर जो इंसान को इंसान बना दे।।
              ✍️राजीव कुमार रंजन
             टीकापट्टी, पूर्णियाँ(बिहार)
   
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         हरे कृष्ण प्रकाश 
         पूर्णियाँ, बिहार
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