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6/12/22

कहानी संघर्ष की..-दिलखुश गुर्जर

 कहानी संघर्ष की(सत्य घटना पर आधारित) एक बार जरूर पढ़े...

साहित्य आजकल द्वारा आयोजित "हम में है दम" कार्यक्रम की शुरुआत हो चुकी है। ज्ञात हो कि इस प्रतियोगिता कार्यक्रम में भाग लिए सभी रचनाकारों में जो विजयी होंगे उन्हें नगद पुरस्कार स्वरूप 101 रुपया, शील्ड कप और सम्मान पत्र उनके आवास पर भेज कर सम्मानित किया जाना है।  यदि आप भी भाग लेना चाहते हैं तो टीम से सम्पर्क करें।  

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कहानी के पात्र:- 1 लेखराज(छोटा भाई जो मामाजी का लड़का है, 

  2. दिलखुश (लेखक स्वयं),

 3. मानसिंह (छोटा भाई) 


इस छायाचित्र में दिखाई दे रहे प्रत्येक चेहरे के पीछे संघर्ष  छिपा हुआ है ...आपने अखबारों में संघर्ष की कहानियों को तो पढ़ा ही होगा, लेकिन अखबारों में भी कुछ अध्याय ऐसे छूट जाते हैं, जिन्हें कोई नहीं पढ़ पाता सिर्फ उनका संघर्ष उन्हें ही ज्ञात रहता है या उनके परिवार को...


मैं आज हमारे 7 मामाजी में, नंबर -3 के मामा के बड़े सुपुत्र, लेखराज के बारे में इस मंच के माध्यम से आपको बताने जा रहा हूं, जिससे उसकी लगन और मेहनत को आप सलाम कर सकें, आप जान सकें कि किस प्रकार एक मध्यम वर्गीय परिवार का छात्र, अपनी इच्छाओं का दमन करते हुए, अपनी जीत की कहानी गढ़ता है....


जन्म से ही मेधावी छात्र लेखराज अपनी अदम्य क्षमताओं के साथ 10वीं कक्षा 76% अंको के साथ उत्तीर्ण करता है, इस क्रम में वह 12वीं कक्षा भी 73% अंको के साथ, विज्ञान संकाय से उत्तीर्ण करता है। और अब वह उस मोड़ पर आ चुका होता है, जहां से उसे जीवन संग्राम में कूदना  है...


          12वीं कक्षा उत्तीर्ण करने के साथ ही एक छात्र उस एक ऐसे चौराहे पर आ खड़ा होता है, जहां से अनंत मार्ग निकलते हैं, लेकिन उचित राह का चुनाव करना बेहद कठिन होता है,  यह निर्णय रोड पर लिखे उस स्लोगन के समान है, कि "सावधानी हटी दुर्घटना घटी"। यहां लिया गया निर्णय उस छात्र के जीवन का मार्ग प्रशस्त भी करता है और बाधित भी...

कुल मिलाकर यह एक विकट मोड़ होता है ...


लेखराज भी इसी मोड़ पर खड़ा था, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे ...

किस तरह की पढ़ाई करे, जिसमें खर्चा भी कम हो और कोई अतिरिक्त शुल्क भी ना लगे...

सभी तरह की पूछताछ के बाद हम सबने यह निर्णय लिया कि लेखराज भी शिक्षक की ही पढ़ाई करेगा। यह निर्णय केवल शिक्षक बनने के उद्देश्य से नहीं था, यह परिवार की वित्तीय चुनौतियों और परिस्थितियों को ध्यान में रखकर लिया गया निर्णय था, क्योंकि उसके पिता एक गरीब किसान होने के साथ - साथ एक मजदूर और एक मजबूर पिता भी थे... 

वह खेती के दिनों में खेती करते और गर्मियों के दिनों में हमारे पिताजी के साथ अपने पुत्र के सपनों को उड़ान देने के लिए रामगंजमंडी की धनिया मंडी में हम्माल का कार्य करते...

उनकी अवस्था स्वयं की उम्र के लोगो से 10 वर्ष अधिक दिखने लगी थी क्योंकि हम्माल का कार्य "घाणी में जुते हुए उस बैल के समान होता है जिसे यह भी पता नहीं होता कि वह कब तक जुता रहेगा"...

पर कहते है ना कि व्यक्ति जो कार्य अपने लिए नहीं करता, वह ख़ुद की औलाद के लिए करता है, यह उसके लिए ऐसा निवेश होता है, जिसमें लाभ होगा या हानि उसे यह भी अंदाजा नहीं होता....

लेखराज जयपुर आ चुका था, उस समय हम भी उस दौर से गुजर रहे थे कि जयपुर जैसे महानगर में 1 दिन निकालना 1 महीने के बराबर हो गया था..

पर कहते हैं ना कि नियत अच्छी हो तो नसीब कभी बुरा नहीं हो सकता...


तभी हमें एक इमारत की रखवाली का काम मिल गया जिसमें हमें 9 हज़ार रुपए देना तय हुआ और बदले में हमें मालिक की गाड़ियों की भी देखभाल करनी थी। मुझे यह कहते हुए बिल्कुल संकोच नहीं है कि वह एक "चौकीदार" का काम था। मुख्य बात यह थी कि हमें रहने की जगह वहां मिल गई, जो हमारे लिए सोने पर सुहागा था। यह नौकरी हमारे लिए किसी बड़ी कम्पनी के सुपरवाइजर से कम नहीं थी.....

समय निकलता गया लेखराज की भी पढ़ाई पूरी हो गई अब इंतजार था तो शिक्षक भर्ती की विज्ञप्ति का....

कुछ समय पश्चात मेरा भी शिक्षक पद पर पदस्थापन  रावतभाटा हो गया, और उसी के कुछ समय बाद मानसिंह का भी शिक्षक  पद पर पदस्थापन जोधपुर हो गया। अब लेखराज के सामने विकट परिस्थिति आ गई, वह मानसिंह के पास  जोधपुर जाना चाहता था क्योंकि ये दोनों ही हम उम्र थे, पर मुझे लगा कि इसका जोधपुर जाना ठीक नहीं, क्योंकि ये दोनों भाई कम और मित्र ज्यादा थे। हमेशा हंसी ठिठोली करते रहना इनका काम था। मेरे मस्तिष्क में यह विचार पक्का हो चुका था, कि यह वहां रहकर नहीं पढ़ पाएगा ...

लेखराज को इस विचार के चलते दिल पर पत्थर रखकर रावतभाटा आना पड़ गया..

मैं उससे उम्र में काफी बड़ा था, तो मेरे साथ उसकी हंसी ठिठोली  नहीं चल पाई...

और मेरे द्वारा दिए गए प्रवचन जो आदमी की आत्मा को अंदर तक हिला दे  मैने शुरू कर दिए..


अब लेखराज ने अपने सपनों की उड़ान भरना शुरू कर दिया, मुझसे मिलने कई शिक्षक साथी आते रहते थे, उन सबको देखकर उसका आत्मबल और बढ़ गया, ये सभी साथी अपने संघर्ष और अनुभव की कहानियां सुनाते और सभी साथी लेखराज को समय - समय पर प्रेरित करते रहते, उसने भी अपनी मधुर मुस्कान से सभी का दिल जीत लिया था...

आधा अध्यापक तो वह हमारी बातें सुनकर ही बन गया था बस सरकारी ठप्पा लगना शेष था...


अब इसने भी अपनी जीवन रूपी इमारत में पत्थर डालने का कार्य शुरू कर दिया कुछ समय बाद मानसिंह का स्थानांतरण भी रावतभाटा हो गया ...

अब जीवन खुशी - खुशी आगे बढ़ने लगा मुझे भी अब खाना पकाने और दैनिक कार्यों से मुक्ति मिल चुकी थी क्योकि रसोई का काम इन दोनो (मानसिंह और लेखराज) ने संभाल लिया था....... 


और धीरे- धीरे हम 3 से 4 और 4 से 5 और 5 से 6 सदस्य (मैं स्वयं,सोहन सिंह मानसिंह, लेखराज,टीकाराम और गोरांश) हो गए और अब हमारा छोटा सा परिवार, रावतभाटा के "PG-64" का भरा पूरा परिवार हो गया।


3 वर्ष की इस यात्रा में मैं जब भी रात को किसी भी समय जगता तो मुझे लेखराज हमेशा पढ़ता हुआ दिखाई देता। एक दिन मुझे उसकी मेहनत ने अंदर तक हिला दिया। मैं एक रात को उठा और उसे गहनता से पढ़ते हुए देखा तब शायद वह मनोविज्ञान विषय को पढ़ रहा था, मुझे कुछ समय के लिए लगा कि यदि इसका चयन नहीं हुआ तो...( रुआंसे मन से) 

मैं अपने आंसुओं को अपनी आंखों में दबाकर सो गया और दूसरे दिन उसे थोड़ा कम पढ़ने के लिए कहा,पर उसे तो पढ़ाई का नशा हो गया था, और हो भी क्यों ना उसे अपने मकान पर "छत" भी डलवानी थी और एक नई मोटसाइकिल भी लेनी थी, जो उसका एक सपना था, इस सपने को यकीन में बदलने के लिए वो दिन रात मेहनत करता रहा और अंत में परीक्षा देकर अच्छे अंक प्राप्त किए और आज लेखराज शिक्षक बनकर अपने माता - पिता और परिवार को गौवान्वित महसूस करवा रहा है ....

उसे बूंदी जिला आवंटित हुआ है...उसने परिणाम आते ही मोबाइल लेने और मोटरसाईकल लेने की बात कही तो हम सब की आंखे खुशी से भीग गई।

किसी के लिए हो सकता है ये वस्तुएं कुछ नहीं हो पर हमारे लिए सपना है.......


दुख इस बात का है कि आज "PG-64" का एक सदस्य कम हो रहा है पर खुशी इस बात कि है कि वह अपनी मंजिल को प्राप्त कर चुका है...


रावतभाटा का प्रत्येक साथी जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लेखराज से जुड़ा  है सभी को इस बात की बेहद खुशी है क्योंकि इसने अपनी मधुर मुस्कान से सभी का दिल जीत लिया और आज तक कभी भी किसी भी प्रकार की शिकायत का मौका नहीं दिया और  अपनी क्षमताओं से अपने ही अंधकार को दूर किया....


धन्यवाद लेखराज.....

PG- 64 तुम्हे हमेशा याद करेगा .....

हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं.......

मेरी यही दुआ है कि तुम हमेशा इसी तरह आगे बढ़ते रहो और नित नए आयाम स्थापित करो....और जिस प्रकार लेखराज को अपनी मंजिल मिली है सभी को मिले ......

लेखक:- दिलखुश गुर्जर

     (रावतभाटा) 

मौलिक व स्व रचित रचना

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