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8/14/22

शहीद की अभिलाषा:- प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़

 कविता शीर्षक - शहीद की अभिलाषा



भले नहीं हो मुख में तुलसी, न होठों पर जल गंगा हो

अंतिम क्षण जब मेरा आए, हाथ में मेरे तिरंगा हो।

देश की खातिर दूं कुर्बानी, मन बस इतना चंगा हो

अंतिम क्षण जब मेरा आए, हाथ में मेरे तिरंगा हो।


     कभी न झंडा झुकना पाए

     देश तो आगे बढ़ता जाए

     भले हो सर्दी, गर्मी, बरखा

     कभी न मेरा दिल घबराए

सीना तान मैं बढ़ा चलूं जब दुश्मन से पंगा हो

अंतिम क्षण जब मेरा आए,हाथ में मेरे तिरंगा हो।


      रहे याद बस ये कुरबानी

      बात जो तुमने इतनी मानी

      सच कहता हूं बात ये मानो

      देश न कोई भारत का सानी

रहें सभी बस मिल - जुलकर, घर घर यमुना गंगा हो

अंतिम क्षण जब मेरा आए,हाथ में मेरे तिरंगा हो।

भले नहीं हो मुख में तुलसी, न होठों पर जल गंगा हो

अंतिम क्षण जब मेरा आए, हाथ में मेरे तिरंगा हो।


रचनाकार @ स्वरचित एवम मौलिक

प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़

गोधरा (गुजरात) 



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