शीर्षक - यह कोई नई बात नहीं है
यह कोई नहीं बात नहीं है , हर वर्ष ऐसा होता आ रहा है।
जब से भारत आजाद हुआ है, यह जश्न मनाया जा रहा है।।
हरवर्ष यही आह्वान, उस लाल किले से होता है।
मिलजुलकर रहने का संदेश, वजीरों की जुबां पे होता है।
जरा सोचो ,हकीकत में क्या यह हो रहा है।।
शायद नहीं, आज भी खूं इस जमीं पे बह रहा है।।
मजहब के नाम पर ,कत्ल इंसान का हो रहा है।
अपने स्वार्थ के लिए, ईमान और इंसाफ बिक रहा है।।
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कभी उड़ीसा, कभी बिहार, कभी गुजरात तो कभी महाराष्ट्र में।
यूपी ,राजस्थान, दिल्ली में भी जल रहा है इंसान नफरत में ।।
अहिंसा, सहनशीलता, धर्मनिरपेक्षता जिस धरती का धर्म रहा है।
उसी देश ,उसी जमीं पर आज, नरभक्षी पैदा हो रहा है।।
पहले अंग्रेजों के गुलाम थे, आज कुर्सी के गुलाम है।
भ्रष्टाचार, कालाबाजारी और बलवे को नेता करते सलाम है।।
क्या यही सपना देखकर, उन वीरों ने कुर्बानी दी थी।
क्या यही वह ज्योति है, जो उस वक़्त घर घर जली थी ।।
अगर चलता रहा यही सिलसिला, इसमें कोई शक नहीं।
गुलाम हो सकते हैं फिर से, वह दिन भी असम्भव नहीं।।
क्योंकि नफरत, गद्दारी का लहू, रगों में जो बह रहा है।
भाई का भाई के हाथों खूं , आज भी हो रहा है।।
रचनाकार एवं लेखक- गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
पता- ग्राम- ठूँसरा, पोस्ट- गजनपुरा
तहसील एवं जिला - बारां(राजस्थान)
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(पूर्णियां, बिहार)