शीर्षक –इस कदर न मदहोश हो
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इस कदर न मदहोश हो,
तुम्हे प्यास लग जाएगी
हर सांसे हो मदहोश हवा
प्यार की छटा लहराएगी।
ये प्यार का नाटक नही ,
ये प्यार एक नशा है ,
जो चढ़ गया सर पर अगर
तो जिंदगी वफा है ।
तू कुछ नही कर पाएगी ,
दिल में फितूर बढ़ जायेगी
इस कदर न मदहोश हो
तुम्हे प्यास लग जाएगी ।
हर सांसे हो मदहोश हवा
प्यार की छटा लहराएगी ।
स्वरचित मौलिक
Navendu kumar Verma
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धन्यवाद
हरे कृष्ण प्रकाश ( युवा कवि)
(संस्थापक- साहित्य आजकल, साहित्य संसार)