साहित्य आजकल द्वारा आयोजित "हम में है दम" कार्यक्रम की शुरुआत हो चुकी है। ज्ञात हो कि इस प्रतियोगिता कार्यक्रम में भाग लिए सभी रचनाकारों में जो विजयी होंगे उन्हें नगद पुरस्कार स्वरूप 101 रुपया, शील्ड कप और सम्मान पत्र उनके आवास पर भेज कर सम्मानित किया जाना है। इसी कार्यक्रम "हम में है दम" के निमित्त आज की यह रचना साहित्य आजकल के संस्थापक हरे कृष्ण प्रकाश के द्वारा प्रकाशित की जा रही है। साहित्य आजकल व साहित्य संसार दोनों टीम की ओर से आप सभी रचनाकारों के लिए ढेरों शुभकामनाएं। यदि आप भी भाग लेना चाहते हैं तो टीम से सम्पर्क करें। आशा है नीचे सम्पूर्ण रचना आप जरूर पढ़ेंगे व कमेंट बॉक्स में कमेंट करेंगे।
होती त्याग की मूर्ति मॉ:- श्रीमति नीरा गर्ग
मॉ
नागरिकता का पाठ
पढाने वाली होती है मॉ|
हम नही होते यदि होती न मॉ
होती ना सृष्टि यदि होती ना मॉ|
होता ना कोई सहनशील
जितनी मॉ|
होता पूत कपूत
होती ना कुमाता मॉ|
बच्चो पर अपनी खुशी
न्यौछावर करती मॉ|
होती त्याग की मूर्ति मॉ|
गीले मे खुद सोती
बच्चे को सूखे मे सुलाती मॉ|
चेहरा देखकर बच्चो के भाव
पहचानती है मॉ|
दूध कम ना पड जाये बच्चो को
खुद दूध ना पीने वाली होती है मॉ,
बच्चे की लगी चोट पर
धोती फाडकर पट्टी बाधने वाली होती है मॉ|
हर पल बच्चे की रक्षा करना
व सदाचार सिखाने वाली होती है मॉ|
अभागा है बच्चा जिसकी
नही होती है मॉ|
बच्चो के सुख के लिये
अन्तिम सॉस तक प्रार्थना
करने वाली होती है मॉ|
बच्चे रोने व बीमार होने पर
खुद रोने वाली होती है मॉ|
ऊँगली पकडकर चलाने
वाली होती है मॉ|
निस्वार्थ प्रेम करने वाली
होती है मॉ|
मॉ की महिमा अपार|
सौ मुख से शेषनाग भी
गुणगान ना कर पाये|
मॉ की महिमा अपार|
श्रीमति नीरा गर्ग
M.A Hindi
Baseily college Bareilly
Agra university
1974
सहारनपुर UP
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