बड़े हर्ष के साथ सूचित कर रहा हूँ कि लोकप्रिय साहित्यिक मंच साहित्य आजकल के द्वारा *"आपकी रचना-आपकी पहचान"* कार्यक्रम आयोजित की गई है। इस कार्यक्रम के निमित्त आ0 नीलम साहू जी की रचना प्रेषित है। आप सभी अवश्य पढ़ें व टिपण्णी दें।
कच्ची उम्र में मैंने अपनी
खिलौनो को तोड़ा था
घर मे बड़े है हम
शायद इसलिए अपनी ख्वाहिशों से मुँह मोड़ा था......
आसान नहीं था ये सफर हमारे लिए
हमने सीखते सीखते आगे आया है
बचपना से उबरे नही थे
वक़्त रहते हमने भी घर चलाया है.......
नापाक रास्ते से अब तक दूर रहे
हमने समझदारी में खुदको सजाया है
चाहते रहे हो या न चाहते हुए
हमने ज़िम्मेदारी में खुदको पकाया है.......
उस दौर से भी गुज़रा है हमने
जब राह चलना मुश्किल था
खुद ही लड़ी थी अपनी लड़ाई
तब न न्यायालय में न्यायधीश न वकील था.......
खुशियाँ नाम की उस किमती अमानत को
हमने थोड़ी तकलीफों के साथ जिया था
अपनों के ही उगले दर्द भरी बातों को
बिना किसी आवाज़ के हँसते हँसते पिया था.......
उतार चढ़ाव भरी ज़िन्दगी के
तब हम कच्चे खिलाड़ी थे
घर कैसे चलाना है
उसके लिए हम एक अनाड़ी थे.......
हँसने खेलने की उम्र में
हम लोगों से थोड़ा दूर रहते है
हम पहले से बेहद बदल गए
सारे लोग भी ये कहते थे......
नीलम साहू
छत्तीसगढ़
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