शीर्षक:- पत्तों की छांव में
पत्तों की छांव में
पत्तों की छांव में,
हूँ मैं अपने गांव में!
वही पेड़ के नीचे,
जिसके तले हर,
उन यादों को,
सहेज रखी हूँ!!
जो हमें हरपल
प्रेरित करती है,
खुद को आगे तक,
यू ले जाने की।
दृढ़ विश्वास के साथ,
कदम बढ़ाने की।।
उन्हीं पत्तों की छांव में,
हूँ मैं अपने हीं गांव में!!
अब भी याद है उसकी,
हर वो रूहानी सी बातें,
जो इन्हीं पत्तों के नीचे,
संग मेरे खूब करती थी,
दूर जाने की बात पर,
कसमें दिया करती थी।
देख ना सब बदल गया,
कुछ ही बीते दिनों में,
यार पत्तों की छांव में,
हूँ मैं अपने हीं गांव में!!
- हरे कृष्ण प्रकाश
पूर्णियाँ, बिहार