जैसे-जैसे बढ़ती है बालों की सफेदी
परिपक्वता सोच में आती ही है।
सबक सीखो अथवा न सीखो
सब मर्जी है तुम्हारी।
पर सलीका व सबक
जिन्दगी सिखाती ही है।
जैसे-जैसे बढ़ती है......
बस निर्भर करता है इन्सान पर
खुद को वो जिस कदर भी ढाले।
इच्छा उसकी ही होती है
अंत में निर्णय की।
चाहे गुलाब बन महके अथवा
खुद को कांटा बना ले।
बस सोच का ही तो कमाल है साहिब,
यही तो मानव को विशिष्ट बनाती है।
वर्ना ...माँ की कोख तो एक सी ही है
तो क्यों वो अलग - अलग.
मानव उपजाती है?
जैसे -जैसे बढ़ती है... ...
बस में तेरे ही है रे मानव!
चाहे खुद को तू जिस रास्ते
पर भी चला ले।
चाहे बन जा मिसाल जग के लिए अथवा
जग को खुद का आलोचक बना ले।
दुनिया ये बन जाती है, उसी की जिसकी
शिद्दत उसे कदमों में झुकाती है।
जैसे-जैसे बढ़ती है बालों की सफेदी
परिपक्वता सोच में आती ही है... ...
परिपक्वता सोच में आती ही है।
✍️ पूजा रानी
( गढ़शंकर पंजाब )
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