प्रकृति की सुंदरता
प्रकृति की सुंदरता को देख रहा हूँ,
मन ही मन कई विचार कर रहा हूँ।।
सुबह की चमकती पहली किरणों के साथ,
पक्षियों की चहकती मधुर ध्वनियों के साथ,
प्रकृति की सुंदरता को देख रहा हूँ,
मन ही मन कई विचार कर रहा हूँ।।
मन की नई उत्प्रेरित जिज्ञासाओं के साथ,
खुद ही खुद से कर रहे सवालों के साथ,
लबालब नदियों की निर्मल धाराओं के साथ,
प्रकृति की सुंदरता को देख रहा हूँ,
मन ही मन कई विचार कर रहा हूँ।।
हमसभी मिलकर पेड़ लगाते चलें,
जग को हरियाली से सजाते चलें,
जग को हरियाली से सजाते चलें।।
प्रकृति की सुंदरता को देख रहा हूँ,
मन ही मन कई विचार कर रहा हूँ।।
- हरे कृष्ण प्रकाश
(पूर्णियाँ युवा कवि)