पुण्य धरा आर्यावर्त की अभिनंदन हो वंदन हो
चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि का हम सबका दिल से वंदन हो
आरंभ से अंत तक खड़ा नव वर्ष हमें सहज नहीं मिला
इस के स्वागत में कुछ अर्पण हो कुछ चंदन हो
माटी यहां की चंदन बने
कठिन जिंदगी ना सघन बने
भेद मिटाकर गले लगे अब ना कहीं कोई कुरूदन हो
प्रकृति ने रंग बिखेरा सुरज निकला सुनहरा सुनहरा
फागुन में धरती इठलाई अमिया बगिया में शर्माई
अरघ दिया अर्पण किया भानुदय पर समर्पण किया
सब पर अपना चिंतन हो
पकवानों की बात करे
पूरण श्री खण्ड पहले धरे
पतझड़ बरसात से सीख ले
कोई नया सा गीत ले
नवचेतना का प्रवास हो
नव वर्ष हमारा कुछ खास हो।
नवरात्रि और नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
स्वरचित: -
श्रीमती पीयूषा पियूष बर्वे
मध्यप्रदेश
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धन्यवाद
हरे कृष्ण प्रकाश ( युवा कवि)
(संस्थापक- साहित्य आजकल, साहित्य संसार)