रचना :- वो लम्हे - पुजा शर्मा
कुछ पुरानी बाते ताजा कर ली जाये ,
बुरे भाव से कहा या अच्छे भाव से पता नहीं ,
वो बातें मुझे हमेशा याद रहेगा,
जो मुझसे कहा था,
एक वो दिन था और एक आज का दिन है
उस व्हाट्सएप समूह के एक सदस्य ने
कहा- इतनी योग्यता है आप में तो आपकी
लिखी रचनाएँ यहाँ क्यों डालती हो ..?
कहीं योग्य स्थान पर डालें।
मैं नहीं जानती वो कौन था पर
वो हमारे एम. ए हिन्दी समूह का सदस्य था
उसके एक कमेंट के वजह से
व्हाट्सएप समूह के सारे सदस्य बहस करने लगे
और कुछ टिप्पणी भी करने लगे
उन्हीं में से एक सदस्य बोला कि
यह समूह कोई रचना के लिए नहीं है,
यह समूह बात चीत करने के लिए है,
मैं भी उस समूह की एडमिन,सक्रिय सदस्य थी ,
यह बात तो स्वीकार करनी ही थी
जैसे अनुशासन में रखना एक माॅनीटर का काम रहता है
वैसे ही अनुशासन में रखना तो
मैंने स्वीकार कर लिया की अब कभी इस समूह में,
मैं अपनी कोई भी रचना कभी नहीं भेजूंगी
ना ही कोई फालतू विषय पर बात करूगीं ,
एक वो दिन था, और एक आज का दिन है,
मेरी रचनाएँ हर पत्रिका में प्रकाशित हो जाती है
भले ही इतनी योग्यता नहीं फिर भी
शब्दों का साथ है खुद पर विश्वास है
आनलाइन कवि सम्मेलन होते रहते है,
आनलाइन भी प्रकाशित होती है
और सम्मान पत्र भी मिलते हैं
आज मैं एक-एक करके सीढ़ियां चढती जा रही हूँ ,
क्या कहूँ इतनी खुश हूँ कि
वरिष्ठ साहित्यकार कवि सम्मेलन में
आने के लिए आमंत्रित करते हैं,
कहीं कवि सम्मेलन में सरस्वती वंदना करते हैं
तो कहिं काव्य पाठ
इस तरह मेरी जिन्दगी में
सभी सदस्य विशेष स्थान प्राप्त करते हैं
दो पंक्ति
जो टूट जाएगा ठोकरों से,
भला मंजिल कैसे पाएगा....
ए सफर है अल्फाजों की ,
हर किसी को समझ नहीं आएगा....
स्वरचित मौलिक घटना
पुजा शर्मा ,जिला विदिशा
मध्य प्रदेश राधे राधे
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