कविता: बापू फिर से आ जाओ न
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बापू फिर से आ जाओ न,
देश को सोने की चिड़िया बना जाओ न,
फिर से अमन, शान्ति का पाठ पढ़ा जाओ न,
लड़ रहे हिन्दू मुस्लिम आपस में भाईचारा सीखा जाओ न,
फिर से उन्हें अहिंसा सीखा जाओ न,
बापू फिर से आ जाओ न,
देश को सोने की चिड़िया बना जाओ न,
देश सुलग रहा है नफरतों में, मोहब्बत सीखा जाओ न,
सत्य का अर्थ सिखा जाओ न,
अहिंसा से लड़ना सीखा जाओ न,
बापू फिर से आ जाओ न,
देश को सोने की चिड़िया बना जाओ न,
नेतागण अपना-अपना स्वारथ देख रहे हैं,
भाई- भाई को आपस में लडाव रहें हैं,
कलम को छोड़ तलवार ले लिया है,
बापू फिर से आ जाओ न,
देश को सोने की चिड़िया बना जाओ न,
फिरंगियों का अत्याचार बढ़ा हद से,
तब शिंकजे से हमने छुड़ाया था,
जहां को एकता का संदेश दिया था,
फिर वही देश बना जाओ न,
बापू फिर से आ जाओ न,
देश को सोने की चिड़िया बना जाओ न,
अब तो भष्ट नेताओं का राज है,
अब सुरक्षित बेटी बाहू नहीं है,
अब अमीरी-गरीबी की गहरी खाई है,
इसे मिटाने आ जाओ न,
बापू फिर से आ जाओ न,
देश को सोने की चिड़िया बना जाओ न,
संस्कृति सभ्यता की कोई झलक नहीं है,
छल कपट के हाथों बेच रहा ईमान है,
अमन, शान्ति का न कोई निशान हैं,
लड़ रहे राम रहीम के बंदे आपस में है,
फिर से उन्हें अहिंसा सीखा जाओ न,
बापू फिर से आ जाओ न,
देश को सोने की चिड़िया बना जाओ न,
चारों तरफ कूड़ा कचरा जमा है,
स्वचछ भारत अभियान चला जाओ न,
अब तो फैशन का दौर आ गया है,
फिर से सदा जीवन जीना सीखा जाओ न,
बापू फिर से आ जाओ न,
देश को सोने की चिड़िया बना जाओ न।।
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कुमारी गुड़िया गौतम (जलगांव)
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