मजदूर की व्यथा-कथा - By:- डा. के. के. चौधरी
Sahitya Aajkal:- हरे कृष्ण प्रकाश (युवा कवि)
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शीर्षक:- मजदूर की व्यथा-कथा -
तुम सितार के तार बजा कर, नित खुद का मन बहलाते।
हम मिहनत-कश अब घाम बहा, हीरे मोती उपजाते।
तुम सोते सुख महलों में, अपनों से लिपटे-सिमटे।
हम भूमि बिछा आकाश ओढ़, रहते सबसे हिलमिल के।
जीवन का उद्देश्य फकत क्या, खुद को ही सुखी बनाना?
या फिर औरों के सुख-दुख में, मिल स्नेहिल-दीप जलाना?
अनमोल बड़ा मानव जीवन, मालिक की दया निराली।
इस नेमत का मूल्य न समझे, समझो वही मवाली।
खुद खाते तुम मौज मनाते, दूजे को देख न पाते
दु:खियों के दुख के भीतर तुम, अब झांक कभी न पाते।
बड़े भाग मानुष तन पावा, गोस्वामी जी भी बोले।
बड़ा अभागा है वह मानव, जो मर्म न इसका खोले
अब तुम समझो याकि ना समझो, यह कलमकार का मत है।
दीन दुखी के आँसू में ही, वो राम रहीम बसत है।
✍️ डा. के. के. चौधरी
पूर्णियाँ, बिहार
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हरे कृष्ण प्रकाश
पूर्णियाँ, बिहार
7562026066
नोट:- सभी कविताएँ साहित्य आजकल के youtube पर अपलोड कर दी जाएगी।
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