साहित्य आजकल द्वारा आयोजित "हम में है दम" कार्यक्रम की शुरुआत हो चुकी है। ज्ञात हो कि इस प्रतियोगिता कार्यक्रम में भाग लिए सभी रचनाकारों में जो विजयी होंगे उन्हें नगद पुरस्कार स्वरूप 101 रुपया, शील्ड कप और सम्मान पत्र उनके आवास पर भेज कर सम्मानित किया जाना है। यदि आप भी भाग लेना चाहते हैं तो टीम से सम्पर्क करें।
ये पल-पल राहें दौड़ें
यू करती पुकार।
उठ मुसाफिर उठ भला
क्यूँ बनता शिकार।।
आलस में नाहीं शख्ती,
ये ढूंढे जुगाड़।
नींद में सपने बोएं,
तो देगा उजाड़।
मौसम की क्यूँ फसल भली?
ले करले विचार।
बेमौसम नित रोग लगें,
ना घलता अचार।
हाथ-पांव सब साथ चलें,
न बिगड़े आकार।
उठ मुसाफिर उठ भला,
क्यूँ बनता शिकार।।
आज नहीं तो कल चलेगा।
सदा रहे न धरना।
आज नदी है साथ में तेरे
कल मिलेगा झरना।
कतरा-कतरा उठ चला
बन वर्षा आधार।
धरती की प्यास जगाए
सूरज तेज तपार।
सूखे पत्ते गिर ले आएं
कोमल-सी बहार।
उठ मुसाफिर उठ भला
क्यूँ बनता शिकार।।
पुर्जोर युवा में रक्त बहे
अंग जैसे आँच।
बाधा भी बंध जाएगी
बन्दे खुद को जाँच।
सपनों की इस दुनियां में
मन दोहरी कटार।
जो कदमों के साथ चलें
मिले खुशियां अपार।
राहों से क्यों राह मिले?
भला करना विचार।
उठ मुसाफिर उठ भला
क्यूँ बनता शिकार।।
मन में जबतक शक्ति हो
उम्मीदें अपार।
उठ मुसाफिर उठ भला
क्यूँ बनता शिकार।।
युवा कवि:
महेश कुमार (हरियाणवी)
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