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12/19/22

ऐ दिल ए नादान (कविता):- कवि रंजित तिवारी


  ऐ दिल ए नादान:-  कवि रंजित तिवारी

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ऐ दिल ए नादान

ढूंढ क्या रहे हो तुम ?

क्यूं भटक रहे हो....यार

यही सोच रहे हो न !

सब अधूरा--अधूरा सा यहां पर

तन है तो मन नहीं

मन है तो जीवन नहीं

जीवन है तो पल नहीं

पल है तो सफल नहीं

सफल है तो तर्क नहीं

तर्क है तो तथ्य नहीं

तथ्य है संज्ञान नहीं

संज्ञान है तो धर्म नहीं

धर्म है तो कर्म नहीं

कर्म है तो अभिलाषा ?

अभिलाषा है तो मन नहीं

क्या करोगे ?? मेरे दिल....

क्या करोगे.....

नियति का घाव--संतुष्टि का भाव

कौन सी चाहत कैसा लगाव

ऐ दिल ए नादान...


✍️ कवि रंजित तिवारी

(पूर्णियां, बिहार)


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