'राह अकेले चलना है'
उलझे सपनों को बुनना है,
टूटे विश्वासों की गुल्लक से!
फिर से निर्णय को सहेजना है,
अब राह अकेले ही चलना है!
सब को साथ लिया था तुमने,
हर एक के लिए तुम जूझ गए!
जो घिरा हुआ था चक्रव्यूह में,
तुम उसके लिए अभिमन्यु हुए!
षड्यंत्रों में तुम फँसे जब-जब,
हर वार ही पीठ की घात हुआ!
तुम नायक थे जो खला उन्हें,
नफ़रत का अब साम्राज्य हुआ!
किस-किस के लिए तुम लड़े नहीं,
हर युद्ध को अपने सर पर लिया!
जो डूब रहे थे अंधेरों में हर पल,
उन चिरागों को भी रौशन किया!
लेकिन यह जग है अविश्वासी,
निर्मम, मिथ्या व घोर स्वार्थी!
हर बार लूटा भरोसा जिन्होंने,
उन द्रोहियों से किनारा करना है!
अब राह अकेले चलना है,
बस किसी एक को चुनना है……!!
-डॉ शैली जग्गी
अमृतसर पंजाब।
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