वीआईपी कस्टमर (कहानी)
:- विपिन वियान हिंदुस्तानी
संध्या और सुगंधा काफी अच्छी दोस्त थी। दोनों के पिता बिनोदपुर में अल्ट्रासाउंड का काम करते थे लेकिन दोनों की आर्थिक स्थिति में जमीन आसमान का अंतर था।
सुगंधा : तुम कॉलेज के पिकनिक टूर पर क्यों नहीं जा रही हो।
संध्या : घर में पैसे की अभी दिक्कत चल रही है। छोटी बहन कोटा में मेडिकल की तैयारी कर रही है। उसे भी पापा पैसे नहीं भेज पाए हैं।
सुगंधा : यार, आखिर तुम्हारे पापा इतना पैसा करते क्या हैं। मेरे पापा से ज्यादा तुम्हारे पापा के यहां पेशेंट की भीड़ रहती है। तुम्हारे पापा के जांच का रेट भी थोड़ा टाइट है।
संध्या : तुम ठीक कहती हो। इस बात को लेकर मम्मी पापा में भी खूब झगड़ा होता है लेकिन आज तक मैंने कभी कुछ नहीं पूछा है।
लोहा गर्म देखकर एक शातिर मुस्कान के साथ
सुगंधा : कहीं दूसरी मम्मी वाली तो कोई बात नहीं
संध्या अपनी दोस्त को जोरदार थप्पड़ रसीद कर देती है
चुड़ेल अपनी हद में रह नहीं तो जुबान की चटनी बना दूंगा।
सुगंधा गुस्से में "जाकर अपने बाप से पूछ कहां रायता फैला रहा है।"
संध्या रोते हुए घर आ जाती है। तभी उसकी अपने पापा शेखर से मुलाकात होती है लेकिन वह पापा को बिना टोके अंदर चली जाती है।
थोड़ी देर में उसकी मां आवाज लगाती है। संध्या देखो पापा क्या बोल रहे हैं।
संध्या कोई जवाब नहीं देती है। थोड़ी देर में उसके पापा उसके कमरे में आकर बोलते हैं। बेटा यह रुपए रख लो और पिकनिक पर चली जाना।
संध्या रोते हुए। पापा आप इतना रुपया कमाते हैं फिर भी पैसे की इतनी तंगी क्यों रहती है।
शेखर : बेटा, मैं तो पूरी कोशिश करता हूं लेकिन महंगाई और खर्च बहुत ज्यादा है।
संध्या : झूठ, आप मम्मी और हम सबको धोखा दे रहे हैं।
शेखर संध्या को जोरदार तमाचा लगा देता है। कॉलेज जाकर यही सब सीखती हो।
हां, यही सीखते हैं। सुगंधा रोज मेरा मजाक बनाती है।
शेखर : कौन सुगंधा !! सांतनु की बेटी...।
संध्या चुप रहती है।
शेखर : हरामखोर खुद तो कितनों की हत्या करवा डाला और अब उसकी बेटी भी अलग ही गुल खिला रही है।
काफी देर मौन रहने के बाद शेखर एक जांच रिपोर्ट संध्या को थमा देता है। संध्या इसे थोड़ा देखकर बताओ, क्या है ?
संध्या रिपोर्ट देखकर, यह तो मम्मी का रिपोर्ट है।
शेखर : डेट
संध्या : 13 जुलाई 2005
लेकिन आप मुझे क्यों दिखा रहे हैं।
शेखर : यह तुम्हारी मां के तीसरी डिलीवरी से पहले का रिपोर्ट है लेकिन सांतनु के स्टाफ की गलती से यह तुम्हारे मां की जगह मेरे पास पहुंच गया था।
संध्या : अगर मां के पास पहुंचता तो क्या हो जाता ?
शेखर : तुम्हारी छोटी बहन इस दुनियां में आने से पहले खत्म हो चुकी होती।
संध्या शॉक्ड होकर बोलती है लेकिन मां तो सबसे ज्यादा छोटी बहन को प्यार करती है।
शेखर : वह तो हर मां प्यार करती है लेकिन तेरी दादी को पोता चाहिए था, पोतियों की भीड़ नहीं।
संध्या : लेकिन सांतनु अंकल ने भ्रूण का लिंग बता कर बहुत गलत किया।
शेखर : क्या गलत और क्या सही मुझे नहीं पता लेकिन हमारे धंधे में इसे वीआईपी कस्टमर कहा जाता है और दस गुना ज्यादा रेट भी मिलता है।
संध्या : तो सुगंधा की अमीरी का यह राज है।
शेखर : बेटा मैं चाहता तो तीन बेटियों के बाद दूसरी मम्मी भी ला सकता था लेकिन मैंने तुम्हारे लिए दूसरी बहन लाना मुनासिब समझा।
संध्या : पापा के पैरों में गिरकर, सॉरी पापा।
शेखर : बेटा सांतनु के क्लीनिक के बाहर रोज कई मम्मी की रूह कंपाने वाली चीख सुनता हूं तो सांतनु से बड़ी घृणा होती है लेकिन आज तुमने थोड़ी देर के लिए सही, मुझे एहसास कराया कि सांतनु सही है।
संध्या और भी जोर जोर से रोने लगती है।
शेखर : बेटा रोओ मत। तुम खुशनसीब हो कि तुम्हें दुनियां में रोने का मौका मिला नहीं तो ढेरों बिटिया रोने की स्थिति में आने से पहले ही दुनियां को रुखसत कर जाती है।
संध्या : आखिर अपने ही मां बाप अपनी बेटियों के साथ ऐसा क्यों करते हैं।
तभी संध्या की मां भी वहां पहुंच जाती है। भाव विभोर होकर, बेटा बेटियां पराया धन होती है और बाप की पगड़ी बिना गिरवी रखाए कोई इसे स्वीकार नहीं करता है।
तभी सांतनु के क्लीनिक से किसी महिला की जोरदार चीख आती है और तीनों और जोर जोर से रोने लगते हैं।
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