साहित्य आजकल द्वारा आयोजित "हम में है दम" कार्यक्रम की शुरुआत हो चुकी है। ज्ञात हो कि इस प्रतियोगिता कार्यक्रम में भाग लिए सभी रचनाकारों में जो विजयी होंगे उन्हें नगद पुरस्कार स्वरूप 101 रुपया, शील्ड कप और सम्मान पत्र उनके आवास पर भेज कर सम्मानित किया जाना है। इसी कार्यक्रम "हम में है दम" भाग-2 के निमित्त आज की यह रचना साहित्य आजकल के संस्थापक हरे कृष्ण प्रकाश के द्वारा प्रकाशित की जा रही है।
साहित्य आजकल व साहित्य संसार दोनों टीम की ओर से आप सभी रचनाकारों के लिए ढेरों शुभकामनाएं। यदि आप भी भाग लेना चाहते हैं तो टीम से सम्पर्क करें। आशा है नीचे सम्पूर्ण रचना आप जरूर पढ़ेंगे व कमेंट बॉक्स में कमेंट करेंगे
मुसाफ़िर
मुसाफिरों की दुनिया मे एक हमसफ़र अपना भी हो
लिख लेते है दो-चार पंक्तिया ये सोचकर
शायरों की महफ़िल में एक नाम अपना भी हो
दोस्त बनकर तो लोग दगा करते है
दोस्तों की महफ़िल में एक दुश्मन अपना भी हो
मुसाफिरों की दुनिया मे एक हमसफ़र अपना भी हो
यहाँ हर रोज पढ़ते है अखबारों में किस्से मोहबत के
अखबारों में एक किस्सा मोहबत का अपना भी हो
मुसाफिरों की दुनिया मे एक हमसफ़र अपना भी हो
गिरे थे अश्क तेरे दामन पर आँखों से 'कौशिक'
हक मोतियों में ढ़लने का इनका भी हो
मुसाफिरों की दुनिया में एक हमसफ़र अपना भी हो ।
विरेंदर कौशिक (जोशी)
पानीपत (हरियाणा)
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