बड़े हर्ष के साथ सूचित कर रहा हूँ कि लोकप्रिय साहित्यिक मंच साहित्य आजकल के द्वारा *"आपकी रचना-आपकी पहचान"* कार्यक्रम आयोजित की गई है। इस कार्यक्रम के निमित्त आ0 शिवशंकर कुमार शिवाजी जी की रचना प्रेषित है। आप सभी अवश्य पढ़ें व टिपण्णी दें।
शीर्षक:- #एक पिता#
तू आसमानो में उर,
ना कर आंधी की डर।
तेरे पीछे खरा हूँ मैं,
तू करता है क्यों फिक्र।।
तू चाहे जो,
कर सकता है वो।।।
चाँद, तारे क्या चीज है,
सूर्य को उतार सकता है जमीन पर।।।।
तू आसमानों में उर,
ना कर आंधी की डर ।
तेरे पीछे खरा हूँ मैं,
तू करता है क्यों फिक्र।।
परिंदों को पीछे छोड़,
बाज सा उड़ान भर।।।
बादलों को चीरकर ,
आसमा में जा ठहर।।।।
तू आसमानो में उड़,
ना कर आंधी की डर।
तेरे पीछे खरा हूँ मैं,
तू करता है क्यों फिक्र।।
मिट्टी को तराश कर,
मूरत का निर्माण कर।।।
पत्थर भी पिघल जाए,
तू कुछ ऐसा काम कर।।।।
तू आसमानो में उड़,
ना कर आंधी की डर।
तेरे पीछे खरा हूँ मैं,
तू करता है क्यों फिक्र।।
तेरे हौसले हो निडर,
तो आंधी बदल देगी अपनी डगर।।।
आंधी का क्या,
वो तो आजमाती है किसमे है कितना है जिगर।।।
✍️शिवशंकर कुमार शिवाजी
(पूर्णियां बिहार)
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