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5/6/20

हार क्यों मानता है तू - By:- धर्मेंद्र राय


हार क्यों मानता है तू- By- धर्मेंद्र राय


Sahitya Aajkal:- हरे कृष्ण प्रकाश (युवा कवि)
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  शीर्षक:- हार क्यों मानता है तू- By- धर्मेंद्र राय
   समयचक्र ही तो है जनाब गुज़र जाएगा,
   रात है अभी, कल सवेरा हो जायेगा,
   प्रतिकूलता का ये जो बादल है,
   हवा तो चलने दे, वो भी छंट जाएगा।।

             हार क्यों मानता है तू,
             असलियत नहीं जानता है तू,
             तू भाग्य पर क्यों रोता है,
             बस देख आगे क्या होता है।।

   क्यों बैठे हो  तू इस आस में,
   कुआं चल कर ना आता  प्यास में,
   तू शस्त्र उठा, संधान कर,
   अपने लक्ष्य के प्रति तू आन कर।।

              जब होता प्रबल्ल मानव का हौंसला है,
              तो पर्वत भी बदलता अपना फैसला है,
              तू स्वंय, स्वंय का र्निमाण कर,
              कोइ तेरे जैसा नहीं यहाँ ये मान कर।।
                                 ✍️ धर्मेंद्र राय
                                     ( पूर्णियाँ, बिहार) )


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         हरे कृष्ण प्रकाश 
         पूर्णियाँ, बिहार
        7562026066

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