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अल्हड़ सयानी बेटी
पापा की है रानी बेटी
अम्मा की बगिया की जी
दुलारी है बेटियां
चमकें नभ मंडल
महके हैं गुलशन
खुशबू दिश दिशाएं
फैलाती हैं बेटियां
भैया की है जो बहना
हैं मान जाती कहना
राखी वो कलाई पर
बांधती हैं बेटियां
डोली पर विदा होए
फुट फुट अम्मा रोए
चट्टान से पापा को भी
रुलाती है बेटियां
डॉ बीना सिंह "रागी"
स्वतंत्र लेखिका कवयत्री शायरा
(रांची झारखंड)
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धन्यवाद
हरे कृष्ण प्रकाश ( युवा कवि)
(संस्थापक- साहित्य आजकल, साहित्य संसार)