Sahitya Aajkal:- हरे कृष्ण प्रकाश
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शीर्षक:- तू खुद से सवाल कर
सपनों की आस में, खुद को तराश दे
मंजिलों की चाह में, खुद को तलाश दे
खुद ही पलट खुद की तकदीर
तू खुद से सवाल कर, तू खुद से जवाब दे !
चट्टानों की अकड़ को तोड़नी है, तुझे
समंदर की लहरों को मोड़नी है, तुझे
नफरतों से टूटे, दीवारों को
हर हाल में जोड़नी है तुझे
तू इनका भी रियाज कर
तू इनका भी हिसाब दे
तू खुद से स्वाल कर, तू खुद से जवाब दे !
अगर चमकना है तुझे, सूरज की तरह
सूरज की तरह, जलना भी सिख ले
पहुंचना है शिखर पर तुझे
दुर्गम राहों पर चलना भी सिख ले
वो राहें बना तू, उन राहों को अंदाज दे
तू खुद से सवाल कर
तू खुद से जवाब दे !
कुछ पलों से लड़ना सीख
कुछ समंदर की तरह बहना सीख
अपने सपनों के पंखों को
तू खुद से उड़ान दे
तू खुद से सवाल कर
तू खुद से जवाब दे !
जो सपना है तेरा, उसमें जान लगा दे
राहों की हर अड़चनों में
तू आग लगा दे
दिन -रात जगा है जिस सफर के लिए
हर हाल में तू उस सफर को जगा दे
तू सफर का आगाज कर,
तू सफर को अंजाम दे
तू खुद से सवाल कर
तू खुद से जवाब दे !
सफर में अड़चने होंगी
धड़कती धडकने होंगी
डरावनी अँधेरी राहों में
डरावनी मंजरें होंगी
इस डर के खिलाफ
अपनी बुलंद आवाज कर
तू खुद से स्वाल कर
तू खुद से जवाब दे !
यक़ीनन मिलेगी मंजिल वो तुझे
अपने इस सफर में हर पल ये एहसास दे,
करता रह मुकाबला उन ख्वाबों के लिए
हर-पल उस सफर में, ये खुद को तू आस दे,
तू जीत जायेगा एकदिन
खुद को विस्वास दे
तू खुद से स्वाल कर
तू खुद से जवाब दे !!
✍️दुर्गादत्त पाण्डेय
रोहतास, बिहार
(Dav pg college, BHU )
सपनों की आस में, खुद को तराश दे
मंजिलों की चाह में, खुद को तलाश दे
खुद ही पलट खुद की तकदीर
तू खुद से सवाल कर, तू खुद से जवाब दे !
चट्टानों की अकड़ को तोड़नी है, तुझे
समंदर की लहरों को मोड़नी है, तुझे
नफरतों से टूटे, दीवारों को
हर हाल में जोड़नी है तुझे
तू इनका भी रियाज कर
तू इनका भी हिसाब दे
तू खुद से स्वाल कर, तू खुद से जवाब दे !
अगर चमकना है तुझे, सूरज की तरह
सूरज की तरह, जलना भी सिख ले
पहुंचना है शिखर पर तुझे
दुर्गम राहों पर चलना भी सिख ले
वो राहें बना तू, उन राहों को अंदाज दे
तू खुद से सवाल कर
तू खुद से जवाब दे !
कुछ पलों से लड़ना सीख
कुछ समंदर की तरह बहना सीख
अपने सपनों के पंखों को
तू खुद से उड़ान दे
तू खुद से सवाल कर
तू खुद से जवाब दे !
जो सपना है तेरा, उसमें जान लगा दे
राहों की हर अड़चनों में
तू आग लगा दे
दिन -रात जगा है जिस सफर के लिए
हर हाल में तू उस सफर को जगा दे
तू सफर का आगाज कर,
तू सफर को अंजाम दे
तू खुद से सवाल कर
तू खुद से जवाब दे !
सफर में अड़चने होंगी
धड़कती धडकने होंगी
डरावनी अँधेरी राहों में
डरावनी मंजरें होंगी
इस डर के खिलाफ
अपनी बुलंद आवाज कर
तू खुद से स्वाल कर
तू खुद से जवाब दे !
यक़ीनन मिलेगी मंजिल वो तुझे
अपने इस सफर में हर पल ये एहसास दे,
करता रह मुकाबला उन ख्वाबों के लिए
हर-पल उस सफर में, ये खुद को तू आस दे,
तू जीत जायेगा एकदिन
खुद को विस्वास दे
तू खुद से स्वाल कर
तू खुद से जवाब दे !!
✍️दुर्गादत्त पाण्डेय
रोहतास, बिहार
(Dav pg college, BHU )
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हरे कृष्ण प्रकाश
पूर्णियाँ, बिहार
7562026066
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धन्यवाद
*Sahitya Aajkal*
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