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"कविता को व्यापक परिदृश्य से जोड़ रखा है सोशल मीडिया ने !: सिद्धेश्वर
कविता का प्रवाह टूटता है तो गद्य सा प्रतीत होती है। : नीलू अग्रवाल
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सोशल मीडिया भी कविता को आमजन तक पहुंचाने का सार्थक माध्यम बन गई है !: डॉ संजीव कुमार
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पटना :23/05/2022 ! " पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों के अतिरिक्त साहित्य को पढ़ने का सबसे सशक्त और सुलभ माध्यम हो गया है, सोशल मीडिया l अधकचरी रचनाएं तो पत्र पत्रिकाओं और पुस्तकों में भी प्रकाशित होती है, लेकिन वहां हमें मोटी रकम चुकानी पड़ती है l शायद इसलिए भी बहुत बार अच्छी रचनाएं हम पढ़ने से चुक जाते हैं l लेकिन जब से सोशल मीडिया पर साहित्य प्रवाहित होने लगा है, नए और पुराने कई रचनाकारों की अच्छी कविताएं भी पढ़ने को मिल जातीं हैं l और हम उससे लाभ प्राप्त करते हैं, वह भी मात्र नेट का मूल्य चुकाने की कीमत पर l ढेर सारी ई पत्र पत्रिकाएं और पुस्तकें मोबाइल और कंप्यूटर पर उपलब्ध है, जिसे हम जब चाहे पढ़ सकते हैं और सुरक्षित भी रख सकते हैं l कविता को व्यापक परिदृश्य से जोड़ रखा है सोशल मीडिया ने !"
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर, " हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन " का संचालन करते हुए संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l
ऑनलाइन आयोजित इस हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन के मुख्य अतिथि युवा कवयित्री एवं समाज सेविका डॉ नीलू अग्रवाल ने कहा कि - -कविताएं अनवरत लिखी जा रहीं हैं, सुनाई जा रही है, छप रहीं हैं। कुछ हमें भाती हैं तो कुछ नहीं भाती । कई बार तुकांत-अतुकांत कविता को लेकर चर्चाएं भी होती हैं। मेरा मानना है कि फूल चाहे गमले में लगे, सुंदर घर की क्यारियों में लगे, जंगल में लगे, कहीं भी लगे.... रहेगा वह फूल ही, अगर उसमें फूल के तत्व मौजूद है तब । उसी प्रकार कविता में अगर जरूरी प्रवाह और भाव पक्ष सबल हो तो फिर तुकांत - अतुकांत कोई मायने नहीं रखता। कई बार कोई अतुकांत कविता हम धड़ल्ले से पढ़ जाते हैं, जबकि कई बार प्रवाह टूटता है तो गद्य सा प्रतीत होती है। दूसरी ओर तुकांत कविता में भी कभी-कभी बस तुक ही होता है भाव का घोर अभाव होता है ,तो प्रमुख है सहज प्रवाह और भाव पक्ष। अगर यह दोनों सबल हैं, तभी हमारी कविता 'कविता' कहलाएगी !
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में नई दिल्ली से प्रकाशित अनुस्वार पत्रिका के संपादक डॉ संजीव कुमार ने कहा कि -- हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन में जुटे ढेर सारे रचनाकारों और दर्शकों से यह पता चलता है कि कविता के प्रति अब भी अनुराग है l नए पुराने रचनाकारों को मंच पर एकत्र करने का सार्थक प्रयास कर रहे हैं संयोजक सिद्धेश्वर, जिसके लिए उनकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है l छंद मुक्त कविता भी सारगर्भित हो सकती है बशर्ते उसमें भाव पक्ष मजबूत हो, और वह पूरी तरह से सपाटबयानी ना हो l सोशल मीडिया भी कविता को आमजन तक पहुंचाने का सार्थक माध्यम बन गई है !
आप कहां-कहां और कैसी कविताएं पढ़ते हैं? विषय की व्याख्या करते हुए ऋचा वर्मा ने कहा कि--पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित कविताएं लोग बस सरसरी निगाहों से पढ़ते हैं अगर उन कविताओं में गहराई हुई तो उनके दिलों में ठहरती है वरना बस एक कान से सुनी और दूसरे कान से निकल जाने वाली बात की तरह सर के ऊपर से निकल जाती है। इसके अलावा इन कविताओं के भीड़ से किसी अच्छी कविता को ढूंढ पाना एक आम पाठक के लिए बहुत ही मुश्किल काम होता है इसलिए बहुत बार ऐसा होता है कि अच्छी कविताएं भी लोगों की नजरों में नहीं आ पातीं।
दूसरी तरफ प्रोफेसर रामेश्वर राय के विचार --".भारत के विश्वविद्यालयों के हिंदी विभाग अपने औसत चरित्र में कविता के हत्यारे हैं। कविता के नाजी कैंप हैं; क्रूर कसाई खाने हैं, जहां कविता के उड़ान की हत्या कर उसके स्थूल देह का पोस्टमार्टम किया जाता है और उसकी रिपोर्ट जारी की जाती है। " का समर्थन करते हुए वैशाली के अपूर्व कुमार ने कहा कि -- यदि ऐसी स्थिति रही तो आने वाला समय कविता के पाठकों की संख्या में अप्रत्याशित गिरावट ला सकता है। यदि हम चाहते हैं कि सभी रूपों में कविता के पाठकों की संख्या बढ़े तो हमें पाठ्यक्रम में कविताओं का चयन बहुत ही सावधानीपूर्वक करने की योजना पर बल देना होगा।क्योंकि पाठक वर्ग तो वहीं से तैयार होता है ! यदि प्रारंभ में ही कविता के प्रति रूचि और समझ की भावना का विकास नहीं होगा तो आने वाला समय कविता के लिए अंधकारमय हो जाएगा।
इस राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कवि सम्मेलन में-- डॉ आरती कुमारी (मुजफ्फरपुर )ने -- मेरा घर आज भी इंतजार में तुम्हारे, आईना सोलह सिंगार किए, तलाश रहा है कब से, अपनी छवि को !/ हरे कृष्ण प्रकाश (पूर्णिया )ने - मजदूर हूं रे काका, मजदूर हूँ, मजबूर नहीं, मैं मजबूर मजबूर l/ नीलम नारंग (नई दिल्ली ने - नहीं पहननी मुझको पायल, ये पायल बेड़ियों सरीखी लगती है !, जो रोक लेती है मुझे आगे बढ़ने से !/ अभिनेता निर्माता निर्देशक अनिल पतंग ने - मार औरों से झपट्टा, छीन कर भरता तिजोरी, राक्षस !/ जयंत ने-- मैं चुप रहा हूं, और चुप रहूंगा !इसे मेरी हार या कमजोरी न समझना !/ सिद्धेश्वर ने- युद्ध, वह अजगर है, जो हज़ारों को नहीं, लाखों-करोड़ों को निगलता है, फिर भी उसका पेट कहाँ भरता है ?
डॉ संजीव कुमार ने-- तुम ही अक्षर , तुम वर्ण प्रखर, तुम शब्द रूप तुम वाक्य सुधर, तुम ही शिक्षा, तुम संस्कार, तुम ही जीवन सब विधि प्रकार !/ भगवती प्रसाद द्विवेदी ने-- बचपन अगर बचाना हो तो फूल बचाना जी! जहर घोलकर मासूमों पर कहर ना ढाना जी !/ हरि नारायण हरि ने -- चले गए सब घर है सुना, बढ़ी बुढ़ारी, अब दुख दूना! रामनारायण यादव (सुपौल ) ने - " जिंदगी इम्तिहान हो गई है, दुनिया इससे परेशान हो गई है !"
कालजयी घनश्याम ( नई दिल्ली )ने - जब से किसी हसीन को दिल में बिठा लिया, पुर लुत्फ़ गम को हमने गले से लगा लिया !/ पूनम श्रेयसी ने- दिव्य प्रेम के रंग में साथी, अपने मन को रंगता जा, हो जीवन के सफल यात्रा, रे पथिक तू चलता जा ! / दिनेश चंद्र ( हावड़ा ) ने -- मैं मजदूर हूं क्योंकि मेरे सर पर छत नहीं, ना पैरों के नीचे जमीन है, ना खाने के लिए रोटी है, ना साथ में कुछ नमकीन है !/ अभिमत नारायण ने-- रोज बनाते बातें इमारत की, कुछ दे नहीं पाता, कुछ ले नहीं पाता !/ मंजू सक्सेना (लखनऊ) ने - तोड़ दे झूठे रस्मों रिवाजों को अब, भूल जाएं सितमगर के वादों को अब ! खुद से खुद में ही भरना है जब हौंसला, याद फिर क्यों करें, कुछ सहरों को अब ?
रशीद गौरी (राज.) ने -- खुदा करे कि हमारा सलाम हो जाए, निगाह उन से मिले और कलाम हो जाए !/ मधुरेश नारायण ने-- वो भी क्या दिन थे, आज भी क्या दिन है, आने वाला दिन, अपना कैसा होगा ?/ मीना कुमारी परिहार -- अपनों ने ही मुझे घर से बेघर कर दिया है !/ पुष्प रंजन ने-- बेटी बहू एक है समझो दहेज लेना पाप है कह दो!, मार दो रिश्तो का दीमक, बंद करो रित कलंकित, अब दहेज निषेध करो मीत ¡/ ज्वाला सांध्य पुष्प ने -- जिक्र माँ का यू कौन करता है ? दिल में उनके भी कौन रहता है ?आ गई बीवी छिन गया साया, याद कर माँ को वह सिसकता है !
जग नारायण पांडे ने
जाग गई नारी शक्ति तो, एक आंदोलन और होगा, क्रूर मानवता के बंधन से, भ्रष्ट समाज उद्धार होगा lकनक हरलालका(असम )ने -- हम स्त्रियां, स्त्री नहीं नदियां हैं, कहां से निकलती है, कहां कहां से बहती हुई, कहां जा पहुंची है !/ राज प्रिया रानी ने-- धान की पुलिया विलग हुई अपने ही बचपन के दामन से, रोप दिया लोगों ने बेगानों की माटी में ! " जैसी सारगर्भित कविताओं का पाठ किया !
इस कवि सम्मेलन में दुर्गेश मोहन, संतोष मालवीय, नरेश कुमार, अमरजीत कुमार, नन्द कुमार मिश्र,. भावना सिंह, ज्योत्सना सक्सेना, बृजेंद्र मिश्रा, खुशबू मिश्र, डॉ सुनील कुमार उपाध्याय, अनिरुद्ध झा दिवाकर, बीना गुप्ता, स्वास्तिका, अभिषेक आदि की भी भागीदारी रही।
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📚📚( प्रस्तुति : ऋचा वर्मा ( सचिव ) / एवं सिद्धेश्वर ( अध्यक्ष ) भारतीय युवा साहित्यकार परिषद)
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