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5/2/21

मजदूर हैं मजबूर नहीं, पहनती है जो, प्रभु ने यह जीवन दिया, श्रमिक दिवस, वेंटिलेटर, अभी चुनाव करवा दो- साहित्य की बात हरे कृष्ण के साथ

सभी चयनिय रचनाकारों को को बहुत बहुत बधाई व ढेरों शुभकामनाएं। आज दिनांक- 02/05/21 को साहित्य आजकल पटल पर प्रेषित की गई सभी रचनाओं में से चयनिय रचना को प्रकाशित की जा रही है। सभी रचना नीचे दिया गया है।





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           मजदूर हूँ , मजबूर नहीं    

मै मजदूर हूँ,

जी हाँ मै मजदूर हूँ,

मेहनत करके खाता हूँ,

और अपना जीवन यापन करता हूँ ||

       

खेतों मे हल चलाता हूँ,

धरती से सोना उगलवाता हूँ,

सबका पेट पालने को मै,

अपना पसीना बहता हूँ  |

  

ऊंचे -ऊंचे पर्वतो को,

तोड़ -तोड़ मै कटवाता हूँ,

दुगर्म शिखर पर पहुंचने के लिए,

मै रह बनाता हूँ ||


नदियों पर बाँध बनाता हूँ,

विधुत मै बनवाता हूँ,

सबके जीवन मे उजियारा लाने को, 

मै सदैव तैयार रहता हूँ |


बनाता हूँ मै मकान अनेक,

 बहुमंजिला हो या दुकान समेत,

खुद झोपड़पट्टी मे रहते है,

पर औरों के सिर पर छत देते है ||


विश्व की ऐतिहासिक इमारते,

सारी दुनिया को दिखाई है,

अपना सर्वस्व लुटाकर भी,

दुनिया बहुत चमकाई है |


मजदूर हूँ,बेबस नहीं,

मेहनत,मजदूरी करना मेरा काम है, 

परिवार का पालन करना अधिकार है,

वरना ये जीवन बेकार है |


मेरे इस बलिदान को तुम,

 याद सदा ही रखना,

कभी गरीब मजदूर समझकर,

मेरा तिरस्कार मत करना ||

         स्वरचित

अर्चना चंचल दिल्ली


*क्यों लुभाती हो*

विधा : गीत


खनकती चूड़ियां तेरे 

मुझे क्यों लुभाती है।

खनक तेरी पायल की

हमको क्यों बुलाती है।

हँसती हो जब तुम 

तो दिल खिल जाता है।

मोहब्बत करने को मेरा

मन बहुत ललचाता है।।


कमर की करधौनी 

भी कुछ कहती है।

प्यास दिल की वो 

भी बहुत बढ़ाती है।

होठो की लाली हंसकर 

हमें लुभाती है।

और आँखे आंखों से

मिलना को कहती है।।




पहनती हो जो :- संजय जैन 

पहनती हो जो

भी तुम परिधान।

तुम्हारी खूब सूरती

और भी बढ़ाती है।

अंधेरे में भी पूनम के 

चांद सी बिखर जाती है।

और रात की रानी की

तरह महक जाते हो।।


तभी तो जवां दिलो में

मोहब्बत की आग लगाते हो।

और चांदनी रात में अपने 

मेहबूब को बुलाते हो।

और अपनी मोहब्बत को

दिल में शामाते हो।

और अमावस्या की रात को भी

पूर्णिमा की रात बन देते हो।।


जय जिनेन्द्र देव 

संजय जैन (मुम्बई)


।रचना शीर्षक।

।।प्रभु ने यह जीवन दिया है

*किसी के उद्धार के लिए।।*

*।।विधा।।मुक्तक।।*

1

इंसान   की   बातों    से इंसान

का पता चलता है।

उजालों के   बाद      रातों  का

पता    चलता   है।।

वक़्त चेहरे   से   चेहरे    उतार

कर    देता  है रख।

कर्मों से   व्यक्ति भाग्य   खातों

का पता चलता है।।

2

ईश्वर ने सांसें दी है इस   संसार

में सरोकार के   लिए।

यह जीवन मिला है     सहयोग

परोपकार के।   लिए।।

केवल खुद के लिए  ही   जीना

पर्याप्त    नहीं   होता।

प्रभु ने जन्म दिया   पीडित  को

खुशी उपहार के लिए।।

3

जानलो कर्मों की फसल संबको

काटनी    पड़ती    है।

अपनी करनी   भी   संबको   ही

छाँटनी    पड़ती    है।।

अपना किया सबको  भोगना ही

है                 पड़ता।

इसी जीवन में अपनी   भूल हमें

चाटनी    पड़ती    है।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।।*





श्रमिक दिवस 


धरती पर तुम हो शिल्पकार ।

पहचान दिखाते बार-बार ।।


गढ़ते हो पत्थर, भवन तुम्ही ।

मन्दिर, मस्जिद, गुरु, चर्च सभी ।।

गति बन जाते हो मोटर की ।

ताकत बनते हो वोटर की ।।

आखों में देखे सपनों को ।

तुम ही सचमुच देते अकार ।।


धरती पर तुम हो शिल्पकार।

पहचान दिखाते बार-बार ।।


काला हीरा तुम ही लाते ।

बालू,मौरंग से भी नाते ।।

लोहा, ताँबा, पीतल,सोना।

ये धातु खोदकर चमकाते ।।

श्रमबिन्दु उमड़ता है तन पर।

जो देता है तुमको निखार ।।


धरती पर तुम हो शिल्पकार।

पहचान दिखाते बार-बार ।।


तुमसे ही अन्न उपजता है ।

तुमसे ही तन भी ढ़कता है ।।

हैं क्रिया कलाप अधूरे सब ।

बिन श्रमिक काम न होते अब ।।

हँसतें-हँसते सब करते हो ।

कर देते पल में, चमत्कार ।।


धरती पर तुम हो शिल्पकार ।

पहचान दिखाते बार-बार ।।


रुखी-सूखी खा लेते हो ।

गम्  में भी तुम गा लेते हो ।।

रातें बिन बिस्तर कटतीं हैं ।

सर्दी में आग सुलगती है ।।

तन पर न है कपडे तेरे ।

बनियान हो गयी तार-तार ।।


धरती पर तुम हो शिल्पकार।

पहचान दिखाते बार-बार ।।


स्वरचित् मौलिक एवम् अप्रकाशित


रचना

शशिकान्त दीक्षित (व्यथित्)

फतियाँपुर, हरदोई, उ.प्र.


एक कोविड पेशेंट की लघुकथा*.....

डॉ. आलोक रंजन कुमार

विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग,

ए. के. सिंह कॉलेज, जपला, पलामू, झारखंड।

                               वेंटिलेटर

      जब मैं वेंटिलेटर पर गया  तो मुझे कुछ दिन पूर्व की एक- एक बातें याद आने लगी ।

 जब मैं स्वस्थ था तो कितनी लापरवाही की । वैक्सिन नहीं लगवाया, दिन भर इधर-उधर घूमता रहता था। सोचा मैं तो स्वस्थ हूं , मेरी प्रतिरोधक क्षमता तो सबल है। कोविड तो है ही नहीं, यह सरकार और पूंजिपतियों का षड़यंत्र नहीं तो और क्या है ? और नहीं तो देश के विभिन्न राज्यों में सरकार चुनाव क्यों करा रही होती। यही सब सोचकर दोस्तों एवं रिश्तेदारों से मिलता जुलता रहा , शादी विवाह एवं उत्सव में सम्मिलित हुए । एक दिन बुखार जैसा महसूस हुआ।

   यह तो वायरल है यार, कोविड-वोविड कुछ नहीं, एक पैरासिटामोल ले लेता हूं । बुखार के दूसरे दिन 

  मेडिकल स्टोर से एंटिबायोटिक्स लेकर का लिया।  कोरोना टेस्ट की जरूरत नहीं है, जबरदस्ती पाज़ीटिव बता देंगे। बुखार के तीसरे दिन भी बुखार नहीं उतर रहा था तो सीटी स्कैन करा लिया, सोचा आर टी - पीसीआर की रिपोर्ट तो चार दिन बाद आएगी । सीटी स्कैन की रिपोर्ट सामान्य थे आश्वस्त हो गया।

लेकिन बुखार के चौथे दिन भी बुखार था तो  ब्लड टेस्ट कराया -- ब्लड टेस्ट में  क्रास रिएक्शन की वजह से शायद फाल्स टायफाइड पाज़िटिव दिखाया । बुखार के पांचवें दिन- "अब टायफाइड का पता चल ही गया है तो मेडिकल स्टोर से एंटिबायोटिक्स ले लेता हूं , बेमतलब के डाक्टर दो-चार सौ रूपए ले लेगा। " बुखार के छठवें दिन- "एंटिबायोटिक्स चल रही हैं, पर कमजोरी बहुत लग रही है अब क्या करूं ? "बुखार के सातवें दिन- डाक्टर मित्र को फोन करके पूछा तो उसने कहा आरटीपीसीआर करवाओ, वहां पहुंचे तो बड़ी भीड़ थी बड़ी मुश्किल से टेस्ट हुआ, अब रिपोर्ट तीन दिन में आएगी।

  बुखार के आठवें दिन- अब तो उठने-बैठने में सांस फूलने लगी,आक्सीजन लेवल चैक करवाया तो 85 निकला । डाक्टर ने फौरन भर्ती हो कर आक्सीजन लगवाने को कहा, अब ना कहीं बेड मिल पा रहा और ना आक्सीजन। सरकार को गाली दी व्यवस्था को कोसा - सरकार निकम्मी है, साला कोई व्यवस्था नहीं, कोई सुनवाई नहीं हो रही है।

 जैसे-तैसे बेड और आक्सीजन की व्यवस्था हुई।

कोई राहत नहीं  मिल रही थी तो मन ही मन अस्पताल को गरियाना शुरू किया। आक्सीजन लेबल और कम हो गई ।

     आज डाक्टर ने कहा - "वेंटिलेटर लगाना पड़ेगा " । यह सुनकर मन में डाक्टर को गाली दी - "साले लूटते हैं।"

 वेंटिलेटर की बात सुनकर परिजन अस्पताल में हंगामा कर रहे थे और नर्स तथा वार्ड बॉय मुझे स्ट्रेचर पर लेकर वेंटिलेटर रूम में ले जा रहे थे बस इतना ही सुन पाया - "पेशेंट सीरियस केस में है"।

अलविदा दोस्तों !


🌹🌹 मजदूरों को समर्पित मेरी रचना जो लॉकडाउन में लिखी थी..........

अभी चुनाव करवा दो बस खुद चल के आयेगी,

इन मजदूरों को ले के जाएगी,

मुफ़्त में खाना खिलाएगी,

जरा पूछे इन्हे कोई की ये होना जरूरी है,

क्या मजदूरों के लिए कुछ भी फ्री नहीं है।।

चले जाते है वो ऐसे की बस चलना जरूरी है,

कहीं रुक जाते है यूही की बस रुकना जरूरी है,

ना बिस्तर है ना माचा है ना कोई इनके ए. सी. है,

क्या मजदूरों के लिए..................

सरकार कहती है कि खाना हम ही देते है,

स्कूल, आश्रम में इनको रोक लेते है,

जरा पूछे इन्हे कोई की कभी ऐसा होता है,

थाली में पूरी चार होती है सब्ज़ी भी थोड़ी है,

क्या मजदूरों के लिए............

कोई दिल्ली से आता है कोई यू. पी. को जाता है,

पर ना कोई इन्हे पूछने वाला ना पता बताने वाला है,

चले जा रहे बस यूंही की जैसे भगवान मालिक है,

क्या मजदूरों के लिए...........

पांवों में छाले है हाथों में थैले है,

गोदी में बिटिया है और मां को संग लेते है,

क्या ये वही देश है जहां ये और हम ही रहते है,

क्या मजदूरों के लिए......

सरकार चाहती है हमें वोट मिल जाए,

ये बस हमें वोट दे जाए फिर चाहे सड़क पे मर जाए,

क्या मजदूर का जीवन इतना सस्ता है,

की नेता पेट भर जाए और मजदूर भूखा सो जाए,

बस आला कमान से यही पूछना है, कि मजदूरों के लिए............

 

नगेन्द्र बाला बारेठ

हाल निवासी दिल्ली


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