'समाज औऱ जीवन की व्यापक दृष्टि फलक मिलती है, संजीव प्रभाकर की गज़लों में ' : सिद्धेश्वर
"समाज औऱ जीवन की व्यापक दृष्टि फलक मिलती है, संजीव प्रभाकर की गज़लों में ": रजनी श्रीवास्तव अनंता
पटना : 25/09/2023 कुछ लोग गज़ल कहते हैं और कुछ लोग गज़ल कहने के पहले उसे जीते हैं । गज़ल को जीते हुए शायर अपने अंदाज में कह उठता है -" मैं कटघरे में खींचकर फिर बेवजह लाया गया, /इसमें नया कुछ भी नहीं कितनी दफा आया गया l/इससे बड़ी बदकिस्मती क्या और हो सकती मेरी, / जब धूप थी सिर पर मेरे, तब छोड़ कर साया गया l"
निश्चित तौर पर एक शायर की जीवंतता स्पष्ट नजर आती है उनके इन शब्दों में! और एक सार्थक गज़ल की यही सार्थक पहचान भी है, जो न केवल वस्तु औऱ लय के नाते अपितु कथ्य और शैली के नाते भी, पाठकों को अपने ढंग से आकर्षित करता है l समाज औऱ जीवन की व्यापक दृष्टि फलक मिलती है, संजीव प्रभाकर की गज़लों में l यही वजह है कि अनिरुद्ध सिंहा जैसे प्रखर शायऱ भी उनके संबंध मेंकहते हैं -" संजीव प्रभाकर की गज़लों की लोकप्रियता और सफलता का कारण उनकी भाषा की सादगी है l जो पारंपरिक गज़ल की जटिलताओं के चढ़ाव को पार करते हुए अपने मुकाम को हासिल कर लेता है l वह भी बिना शब्दों की कलाबाजी किए l"
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में, गूगल मीट के माध्यम से फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर आयोजित ऑनलाइन हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन के संयोजक सिद्धेश्वर ने अपनी डायरी के माध्यम से उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l गांधीनगर के सुप्रसिद्ध शायर संजीव प्रभाकर की गज़लों पर विस्तृत से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि आशीर्वचन के तहत डॉ.कृष्ण कुमार ने ठीक ही लिखा है कि "गज़ल लिखना एक तपस्या है आप लाख नाक रगड़ ले मां सरस्वती की कृपा के बिना एक शेर गज़ल लिखना तो दूर की बात है l निश्चित तौर पर संजीव प्रभाकर ने यह तपस्या की है l उन पर मां सरस्वती की कृपा है और शब्दों को अभिव्यक्त करने की अद्भुत प्रतिभा। " खासकर कई प्रेरणादायक बातें भी उन्होंने अपनी गज़लों के माध्यम से कहा है- "अपने पैरों में जो खड़ा होगा /, उसका कद हर जगह बड़ा होगा l"
कार्यक्रम के प्रथम सत्र में मुख्य अतिथि संजीव प्रभाकर ने एकल काव्य पाठ के तहत अपनी एक दर्जन से अधिक गज़लों का पाठ कर ढेर सारे श्रोताओं को मनमुग्ध कर दिया l उन्होंने इस दौरान कहा कि - "कोई मंच कितना बड़ा है इसका मापदंड उसके सामने बैठे लोग होते हैं। इस हिसाब से 'अवसर साहित्य धर्मी पत्रिका ' का यह मंच मेरे लिए बहुत बड़ा है। जहाँ मेरे अभिभावक तुल्य साहित्यकार बैठे हुए हैं। आदरणीय सिद्धेश्वर जी के संयोजन और संचालन में देश और विदेश के साहित्यकारों को जोड़ने का सफल प्रयास इस मंच ने किया है। इसलिए यह कहना उचित होगा कि यह मंच अपने उद्देश्य में शत प्रतिशत सफल हुआ है। वक्त की तासीर के साथ शब्द के अर्थ भी बदलते हैं और परिभाषाएं भी बदलती हैं। डिजिटाइजेशन के इस युग में हर चीज का केंद्रीकरण हुआ है और इस कारण ही उत्कृष्ट साहित्य और सूचनाएँ सर्व सुलभ हुई हैं। समय के साथ चलते हुए अवसर साहित्य धर्मी पत्रिका ने, इस क्षेत्र में अपना एक कीर्तिमान स्थापित किया है। और इसका श्रेय संस्था के संयोजक, सूत्रधार और संचालक श्री सिद्धेश्वर जी को जाता है। 80 के दशक के लघुकथा आंदोलन से लेकर अभी तक इन्होंने साहित्य की समर्पण भाव से निस्वार्थ सेवा की है। इन्होंने नए पुराने साहित्यकारों को एक मंच पर लाकर सीखने -सिखाने की एक परंपरा की शुरुआत की। इनका यह कार्य निश्चित रूप से स्तुत्य है। आप बहुआयामी प्रतिभा के धनी है। आपके रेखाचित्र देश के विभिन्न स्तरीय पत्र पत्रिकाओं के आमुख की शोभा बढ़ाते हैं। आपको बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं!
कविता हमारी जरूरत है। इसमें हमारी चेतना सांस लेती है।भाव, अर्थ और अनुभूति काव्य के प्राण तत्व है तो अभिव्यक्ति तत्व काव्य का शरीर है। शब्दों के कौशलपूर्ण उपयोग से ही कथ्य प्रभावी बनता है।भाषा का सरल प्रवाह एक लय उत्पन्न करता है जिसके कारण भाषा कर्णप्रिय और सर्वग्राह्य बनती है। इसलिए काव्य में अनुशासन का महत्व बढ़ जाता है। काव्यों में छंदों के प्रयोग से यह अनुशासन पैदा होता है। इससे गेयता आती है। शब्द और संगीत में समन्वय तभी हो सकता है जब दोनों एक दूसरे के साथ कदम-ताल मिलाकर चलें। अर्थात् दोनों एक दूसरे को समझें।
शब्द-खंडों की निश्चित बारंबारता से ही संगीत उत्पन्न होता है। इसलिए काव्य में नपे- तुले शब्दों का महत्व है । यह कहना गलत न होगा कि काव्य की हर विधा रूपवादी है। कविता की भूख जब तक आदमी में होगी तब तक आदमी जिंदा रहेगा। मुझे इस मंच पर मौका देने के लिए और मेरे ग़ज़ल संग्रह 'येऔर बात है' पर परिचर्चा करने के लिए इस मंच के सर्वेसर्वा आदरणीय सिद्धेश्वर जी को बहुत-बहुत धन्यवाद! कार्यक्रम के सुंदर संयोजन और संचालन के लिए अध्यक्ष महोदया सुश्री रजनी श्रीवास्तव अनंता जी और संचालिका श्रीमती राज प्रिया रानी जी को हृदय से धन्यवाद देता हूँ ।"
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में युवा कवयित्री रजनी श्रीवास्तव अनंता ने कहा कि समाज औऱ जीवन की व्यापक दृष्टि फलक मिलती है, संजीव प्रभाकर की गज़लों में l वैसे यह सच है कि सिद्धेश्वर जी और राज प्रिया रानी जी के कुशल संचालन में बहुत सुंदर कार्यक्रम रहा। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आदरणीय संजीव प्रभाकर जी की गजलों ने समां बांध दिया। इसके अलावा श्रीमती चंद्रिका व्यास, श्री शंकर सिंह, श्रीमती विजयाकुमारी मौर्य, श्रीमती रत्ना जी, श्रीमती सुधा पांडे जी, डॉ.अनुज प्रभात, श्रीमती अलका वर्मा, श्रीमती सपना चंद्रा, युवा कवित्री प्रियंका जी, श्रीमती राज प्रिया रानी, श्री शरद नारायण खरे,और स्वयं अध्यक्ष आदरणीय सिद्धेश्वर जी ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। मुझे इस शानदार कार्यक्रम में अध्यक्षता करने का मौका मिला और अपनी रचनाओं को सुनने का मौका मिला इसके लिए मैं मंच के प्रति आभार व्यक्त करती हूँ।
हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रमुख कवि थे- सर्वश्री संजीव प्रभाकर, शंकर, सुधा पांडेय , इंदु उपाध्याय,राज प्रिया रानी, सिद्धेश्वर, रजनी श्रीवास्तव अनंता,घनश्याम राम ,विजय कुमारी मौर्य, प्रियंका रतन, डॉ.अनुज प्रभात, चंद्रिका व्यास, डॉ अलका वर्मा, सपना चंद्रा आदि l दूसरे सत्र का संचालन किया युवा कवयित्री राज प्रिया रानी ने ।
इस गोष्ठी में दुर्गेश मोहन, सुनील कुमार उपाध्याय, संजीव, कल्पना कुमारी, रशीद गौरी, आदि की भी महत्वपूर्ण भागीदारी रही l
♦️ प्रस्तुति राज प्रिया रानी ( उपाध्यक्ष) भारतीय युवा साहित्यकार परिषद
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हरे कृष्ण प्रकाश
(युवा कवि, पूर्णियां बिहार)
(साहित्य आजकल व साहित्य संसार)