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11/22/22

लेखकों की जेब से पैसा लूटने वाले प्रकाशक और संपादक लेखक की कमजोरी को भाँप लेते हैं!" सिद्धेश्वर

" लेखकों की जेब से पैसा लूटने वाले प्रकाशक और संपादक लेखक की कमजोरी को भाँप लेते हैं!" सिद्धेश्वर

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            पटना! 22 /11/2022! "सच तो यह है कि  लेखकों की जेब से पैसा लूटने वाले प्रकाशक और संपादक लेखक की कमजोरी को भाँप लेते हैं  l वे जानते हैं कि  बिना  पैसा लिए हुए पत्र पत्रिकाओं या पुस्तकों में  सिर्फ स्तरीय लेखक ही छपते हैं l इसलिए अधिकांश नए लेखक, जिनकी रचनाएं स्तरीय नहीं होती, पैसा देकर छपना चाहते हैं l ऐसे में प्रकाशक कम, लेखक अधिक जिम्मेदार है या नहीं ?  कुछ लोग प्रकाशक को अच्छा जवाब देते हैं l किंतु इससे प्रकाशक या संपादक को कुछ खास फर्क नहीं पड़ता l उनके हाथों में अच्छे लेखक कम और अस्तरीय रचनाओं के बल पर पैसे देकर छपने वाले कवि - लेखक अधिक होते हैं l गुनाह तो दोनों करते हैं  l लेकिन अधिक दोषी कौन है ? लेखक या संपादक प्रकाशक ? ऐसे कवि लेखक पैसे देने को हमेशा तैयार रहते हैं तभी तो प्रकाशक पैसे लेकर छापते हैं ? 

              भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर, कवि कथाकार सिद्धेश्वर ने ऑनलाइन "तेरे मेरे दिल की बातें " एपिसोड 8 में उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l उनकी यह चर्चा साहित्यिक,सांस्कृतिक एवं सामाजिक संदर्भों से जुड़ी हुई होती है l आधे घंटे के इस लाइव  एपिसोड के भाग 08 में " प्रकाशकों -लेखकों के बीच बिगड़ते संबंध " के  संदर्भ में उन्होंने विस्तार से आगे कहा कि - "   प्रत्येक कवि लेखक अपने गिरेबान में झांक कर देखें, वे साहित्य सृजन के प्रति और साहित्य के प्रति कितने ईमानदार और गंभीर है ? कितने ऐसे साहित्यकार हैं, जो नैतिकता और आदर्श की राह पर संघर्ष कर रहे होते हैं ? प्रकाशन के नाम पर शुल्क मांगना धोखाधड़ी है, तो हम में से अधिकांश कवि लेखक भी यही धंधा क्यों कर रहे हैं ? यह जानते हुए कि  इसमें रचनाओं का स्तर नहीं बल्कि सिर्फ पैसा देखा जाता है, धड़ाधड़ अच्छे लेखक भी क्यों शामिल हो जाते हैं ? ऐसी विषम स्थिति में, समझौता के रूप में मैं यह स्वीकार करता हूं कि - रचना प्रकाशन के बाद,स्वेच्छा से यदि कोई लेखक अपनी एक प्रति खरीदना चाहे तो , इसमें  किसी तरह की बुराई नहीं l क्योंकि उसमें रचना प्रकाशन का मापदंड पैसा नहीं, बल्कि सिर्फ रचना होती है l किंतु इसमें सिर्फ स्तरीय लेखक ही छपते हैं l इसलिए अधिकांश नए लेखक पैसा देकर छपना चाहते हैं l ऐसे में प्रकाशक कम, लेखक अधिक जिम्मेदार है या नहीं? तेरे मेरे दिल की बात के तहत मैं जो कहना चाहता था वह यह है कि - " आप गंभीरता से सोचें कि आप लिखते हैं , किसके लिए ? अपनी रचनाओं  को पाठकों तक पहुंचाने के लिए न ? ऐसे में प्रकाशको के प्रति एक पक्षीय दृष्टिकोण अपनाना गलत है l  यदि आपकी रचनाओं का प्रकाशन  पत्रिकाओं या पुस्तकों में नहीं होगा,तब आपकी रचनाओं के लिए पाठकवर्ग कहां से मिलेगा ? "

      " तेरे मेरे दिल की बात " एपिसोड (08 )  में सिद्धेश्वर के  व्यक्त किए गए विचार पर मधुरेश नारायण ने कहा कि - आज लेखकों की संख्या अधिक हो गई है साथ ही उनका गिरता हुआ साहित्यिक  स्तर एवं छपवाने की भूख ने प्रकाशको को तालमेल करने का मौका दे दिया है l लेखक पैसे देकर छपाने की होड़ में शामिल है l इस कारण आज के प्रकाशक प्रकाशित रचनाओं पर पारिश्रमिक  देना भी छोड़ दिया है ! तो  विजय कुमारी मौर्य विजय (लखनऊ ) ने विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि - आज ना तो लिखने वालों की कमी है,ना पुस्तकों को प्रकाशित करने वालों की l पैसा फेंको तमाशा देखो l ना जाने कितने पुरस्कार खरीदे और बेचे जा रहे हैं l अभी कुछ दिन पहले मुझे पुरस्कार देने के एवज में ₹1000 सदस्यता शुल्क मांगी गई थी l अब लोग पैसे देकर छपावाते हैंl कारण यह भी है कि लिखने वालों की  भरमार है l वे सभी चाहते हैं कि उनकी रचनाएं छपे, भले ही उन्हें अपने पास से प्रकाशन शुल्क देना पड़े lअपने आसपास समाज रिश्तो में चर्चित होना चाहते हैं इसमें  प्रकाशक कितना जिम्मेदार  है यह आप अपने दिल से पूछिए l ऐसे में अच्छा लिखने वाले साहित्यकार का भूनभूनाना लाजमी है l" रतना मनिक ने कहा -कोविड जैसी वैश्विक महामारी में अच्छी और बुरी कई ऐसी घटनाएं घटी जिनसे हमने बहुत कुछ सीखा है। हमें अपने पुराने और नए शौक को पूरा करने का कुछ चुनौती पूर्ण कार्य करने का अवसर भी मिला जिससे हमें नई पहचान मिली रोज़गार का जरिया मिला। इस समय साहित्यिक चैनलों की बाढ़ सी आ गई थी। हर कोई अपने लिखने के शौक को पूरा करता नज़र आया। अनेक विधाओं और शैलियों में लोगों ने अभिव्यक्ति दी।हिंदी भाषा और साहित्य के लिए यह एक सुखद पहलू है किंतु हम सभी पर यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी है कि हमारे लेखन से न साहित्य की मर्यादा का हनन हो और न हम समाज की ही अवहेलना करें । " वही राज प्रिया रानी के विचार में यदि लागत मूल्य पर कोई प्रकाशक पुस्तक प्रकाशित करता है तो इसमें लेखक का भला है l प्रकाशकों के पीछे दौड़ने की अपेक्षा, 5 से 10 लेखक मित्र  आपस में पैसे मिलाकर ताजा संकलन प्रकाशित करें तो वह ज्यादा सार्थक होगा l

                    इनके अतिरिक्त ललन सिंह, सुधा पांडे, पुष्प रंजन,राजेंद्र राज, बिन्नी मिश्रा,सपना चंद्रा हरि नारायण हरि चैतन्य किरण, जयंत  , ऋचा वर्मा, रराजेंद्र राज, डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना, शैलेंद्र सिंह, संतोष मालवीय  राज कांता, श्रीकांत गुप्त ,दुर्गेश मोहन, सिद्धेश्वर सिंह, शैलजा, सुनील कुमार उपाध्याय,नीलम श्रीवास्तव आदि विचारकों ने भी अपने विचार रखे । 

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