शायरी के आसमान को मुनव्वर करेगें सुभाष पाठक ' जिया ' : सिद्धेश्वर
छँद विहीन कविताओं का महत्व दूरगामी नहीं होता!" ':सुभाष पाठक"ज़िया "
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दूर दूर से लोगों को एक साथ एक मंच पर जोड़ने का काम करती है सोशल मीडिया!":डॉ आरती कुमारी
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पटना :28/11//2022! "कहते हैं लोग की गजलों की बाढ़ आ गई है ! इस बात को मैं नहीं स्वीकार करता ! क्योंकि गजल के नाम पर जो कुछ आज परोसा जा रहा है, वह गजल में अपनी बात कहने का प्रयास भर है,ग़ज़ल नहीं! गजल बहुत नाजुक विधा है! मुक्त छंद कविता की तरह आजाद नहीं और ना ही सपाटबयानी कविता की तरह, कविता के सारे हिसाब किताब से दूर l गजल का अपना शास्त्रीय गणित है l और उस गणित में बहुत कम लोग सही जोड़ घटाव कर पाते हैं l"
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में,फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर, ऑनलाइन हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन का संचालन करते हुए, संस्था के अध्यक्ष एवं संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l उन्होंने सुभाष पाठक " जिया " की गज़ल कृति "तुम्हीं से जिया है " पर समीक्षात्मक टिप्पणी देते हुए कहा कि -बावजूद इसके युवा शायरों की महफिल में आज भी कई ऐसे फनकार हैं, जो इस हिसाब और मात्रा के जोड़ घटाव में अपनी बातों को बखूबी प्रस्तुत कर रहे हैं l ऐसे युवा शायरों में ही एक उभरता हुआ नाम है सुभाष पाठक 'जिया' का, जो हिन्दी ग़ज़ल में अपनी अंदाजे बयानी के कारण, बहुत तेजी से उभर कर सामने आ रहे हैं l इस ठेलम ठेला के युग में, वही साहित्यकार खुद को खड़ा कर पाता है, जो अपनी विधा को गंभीरता से लेता है l सुभाष पाठक जब अपनी शायरी में मोहब्बत के अतिरिक्त भी दुनिया भर के जज्बातों को, बहुत ही गंभीरता से पाठकों के सामने कहते हैं, तब वे गजलों की अपनी एक अलग दुनिया बसाते हुए नजर आते हैं l इसका पुख्ता सबूत है, अभिधा प्रकाशन से हाल में ही प्रकाशित उनकी नवीन गजल संग्रह " तुम्हीं से जिया है!- पुस्तक की पहली ग़ज़ल ही अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करती है -" धूप ढल जाती है घटाओं में l,ये असर होता है दुआओं में ll,ए' जिया' इतनी भी सजा मत दो, लुत्फ़ आने लगे सजाओ में ll '
कवि सम्मेलन गीत और गजल को समर्पित रहा l प्रथम सत्र में सुभाष पाठक " जिया " ने एकल पाठ के तहत अपनी नई पुरानी एक दर्जन से अधिक गजलों का पाठ किया! उन्होंने पढ़ी गई गज़लों में कहा - धूप ढल जाती है घताओं में, ये असर होता है दुआओं में!"/ ख्वाब है या है हकीकत क्या है,कोई बतलाकए मोहब्बत क्या है!/ यह कमी आईने में डाली है, मुंह तो उजला है पीठ काली है!/ खुदा का शुक्र है कमरे में आईना भी है, नहीं तो अपनी ही हालत पता नहीं चलती!/ इश्क की आग में जलने को मचलता है दिल, हाथ में रेत की मानिंद फिसलता है दिल!"
अपने भेंटवार्ता के दौरान उन्होंने कहा कि आज के कवियों को गजल लिखने से पहले साधना करनी चाहिए ! छँद विहीन कविताओं का महत्व दूरगामी नहीं होता!"
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ आरती कुमारी ने कहा कि इस खूबसूरत आयोजन के लिए अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के संयोजक और संपादक कवि सिद्धेश्वर जी धन्यवाद के पात्र हैं। ऑनलाइन कार्यक्रम की विशेषता है कि इसके माध्यम से दूर दूर से लोग एक साथ जुड़ पाते हैं। गीत ग़ज़लों की आज की महफ़िल में बतौर अध्यक्षता के रूप में सम्मिलित होकर मैं गौरवान्वित महसूस कर रही हूं l
ऑनलाइन कवि सम्मेलन के दूसरे सत्र मे शिवकुमार बिलग्रामी ( नोएडा ) ने- हमारे पांव डरते हैं तुम्हारे साथ चलने में, जरा सा वक्त लगता है कभी नियत बदलने में!"/ कालजयी घनश्याम (नई दिल्ली) ने - खुदा बेखबर हो गया,तो सबकुछ है बशर हो गया,चला द्वन्द मन में मेरे,समर रात भर हो गया!/ संतोष मालवीय मध्यप्रदेश में गीतों के सब अनुबंध तुम्हारे वास्ते हैं, ये अधरों पर आते छंद तुम्हारे वास्ते हैं!/ डॉ सुनीता सिंह सुधा ( वाराणसी) ने - रब को भी ऊपर देखो, अपने भीतर डर देखो!,मंदिर में है बैठा रब, मत समझो पत्थर देखो ll"/ डॉ अनुज प्रभात ( फारबिसगंज)ने - कभी तुम अच्छे लगते थे, आज भी अच्छे लगते हो, मगर अच्छे अच्छे में फर्क है!"
डॉ आरती कुमारी ने लेके हाथों में हाथ करते हैं,हम निगाहों से बात करते हैं!/ सिद्धेश्वर ने कहा-" कत्ल कर देते हो तुम जब हमारी मुस्कुराहट का, कातिल का नाम लेने से ये होंठ कभी नहीं डरती!"/ डॉ पूनम सिंहा श्रेयसी ने - लिखूं कैसे अभी मैं गीत नेहिल भावनाओं के, यहां केवल उगे हैं शूल अनगिन वर्जनाओं के!/ चंद्रिका व्यास ने - कब से राह तकूँ,तेरा नाम जपूँ,अब तो आजा आ रे आ रे बरखा तू आजा!/मीना कुमारी परिहार ने -मुझे दिलकश बनाती है,तुम्हारी याद आती है,कली जब मुस्कुराती है,, तुम्हारी याद आती है!/ विजय कुमार मौर्य (लखनऊ ) ने - मोहब्बतों के सफर में हम ठहर गए होते,तो हम भी शाम ढले अपने घर गए हो!"/मंजू सक्सेना (लखनऊ )ने -" सुलझा हुआ तो कोई भी रास्ता नहीं मिला, कद का हमारे एक भी बंदा नहीं मिला!/ डॉ नीलू अग्रवाल ने - माना कि तुमसे आजकल लड़ते बहुत हैं,पर प्यार भी तुमसे करते बहुत हैं l/ मधुरेश नारायण ने- कभी किसी का वक्त एक सा न रहा!/ राज प्रिया रानी ने -भीगी यादें गुमसुम पलकें:, तुझे क्यों उम्मीद एक बाकी है,लफ्जों का बगिया सूखा लब पर,हसरत तुझ में अब भी बाकी है!" जैसी सारगर्भित गीत गजलों से देश भर से जुड़े श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया l
इनके अतिरिक्त अपूर्व कुमार,सुनील कुमार उपाध्याय, श्रीकांत गुप्ता, सपना चंद्रा , डॉ नूतन सिंह,रेखा भारती मिश्र, संतोष मालवीय, दुर्गेश मोहन आदि की भी महत्वपूर्ण भागीदारी रही l
प्रस्तुति : राज प्रिया रानी (उपाध्यक्ष ) एवं सिद्धेश्वर ( अध्यक्ष )/ भारतीय युवा साहित्यकार परिषद
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